मध्यप्रदेश में कानून-व्यवस्था की बिगड़ती तस्वीर, मासूम के साथ दरिंदगी ने खड़े किए कई सवाल



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव उद्योग विस्तार और प्रदेश विकास के नाम पर लूट रहे वाहवाही, लेकिन प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमराई

■आखिर अपने पास गृह विभाग रखकर क्या साबित करना चाहते हैं मुख्यमंत्री?

मध्यप्रदेश एक बार फिर उस दर्दनाक घटना से दहल उठा है, जिसने न केवल समाज को झकझोर दिया, बल्कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था की कमजोरियों को भी बेनकाब कर दिया। छह वर्ष की एक मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी ने हर संवेदनशील नागरिक को भीतर तक चोट दिया है। यह घटना सिर्फ अपराध की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की विफलता की भी कहानी कहती है, जो नागरिकों विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदार होती है। घटना के पांच दिन बाद, जब जनआक्रोश सड़क पर उतर आया, तब कहीं जाकर पुलिस ने आरोपी सलमान खान की खोजबीन तेज की। यह देरी अपने आप में एक बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो गई है। क्या मध्यप्रदेश की कानून-व्यवस्था इतनी सुस्त हो चुकी है कि लोगों के दबाव के बिना वह हरकत में नहीं आती?

● जनआक्रोश क्यों फूटा?

पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश में महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ा है। एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट इस चिंता को और गहरा करती है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में सबसे अधिक संख्या में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियाँ छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसी घटनाओं की शिकार होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में 22,393, महाराष्ट्र, 22,390, उत्तर प्रदेश 18,852, राजस्थान 10577, बिहार 9906, असम 10174 और दिल्ली में कुल 7769 आपराधिक मामले दर्ज किये गये हैं। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि हर उस परिवार की पीड़ा का प्रतिबिंब हैं जिसने कानून-व्यवस्था की कमजोरी का दंश झेला है। जनता का गुस्सा इसलिए भी बढ़ा हुआ है क्योंकि यह पहली घटना नहीं है जिसने मध्यप्रदेश को शर्मसार किया हो। इससे पहले भी अनेक मामलों ने पूरे राज्य को हिला दिया था परन्तु अपराध का यह सिलसिला थमता नहीं दिख रहा। चाहे ग्रामीण इलाका हो या शहरी, कहीं न कहीं भय और असुरक्षा की भावना लगातार गहराती जा रही है।

● कानून-व्यवस्था पर सवाल जिम्मेदारी किसकी?

प्रदेश की शासन व्यवस्था में गृह विभाग वह कड़ी है जो कानून-व्यवस्था का सीधा और सबसे बड़ा दायित्व निभाता है। लेकिन इस बार एक और सवाल चर्चा में है वह यह कि पिछले सात दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने इतने लंबे समय तक गृह मंत्रालय अपने पास रखा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव विकास योजनाओं, उद्योगों, निवेश, शिक्षा और कई अन्य क्षेत्रों पर खुद निगरानी रखते हुए लगातार सक्रिय दिखाई देते हैं। लेकिन यदि विकास योजनाओं में व्यस्तता बढ़ रही है, तो सवाल उठता है क्या उन्हें गृह विभाग का महत्वपूर्ण दायित्व किसी सक्षम मंत्री को नहीं सौंप देना चाहिए? गृह विभाग एक फुल-टाइम जिम्मेदारी है। कानून-व्यवस्था में मामूली चूक भी बड़े संकट में बदल सकती है। इसलिए विशेषज्ञों और आमजन की ओर से यह मांग उठना स्वाभाविक है कि इस विभाग को एक ऐसे मंत्री के अधीन किया जाए जो सिर्फ सुरक्षा, पुलिसिंग और अपराध नियंत्रण पर पूरा ध्यान दे सके।

● क्या यह प्रशासनिक लापरवाही का संकेत है?

मासूम बच्ची के साथ हुई बर्बर घटना के बाद जिस तरह की पुलिस कार्रवाई सामने आई, वह कई चिंताओं को जन्म देती है। घटना के तुरंत बाद सक्रियता न दिखा पाना, आरोपी की गिरफ्तारी के लिए लोक दबाव का इंतजार करना और सुराग मिलते हुए भी प्राथमिक स्तर पर ढिलाई ये सभी संकेत पुलिस तंत्र की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।

● एनसीआरबी रिपोर्ट खतरे का बढ़ता दायरा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट मध्यप्रदेश के लिए चिंता का गंभीर विषय है। प्रदेश लगातार उन राज्यों की सूची में शामिल है जहां नाबालिग लड़कियों के खिलाफ अपराधों की संख्या सबसे अधिक है। रिपोर्ट बताती है कि दुष्कर्म, छेड़छाड़, अपहरण और यौन शोषण के मामलों में मध्यप्रदेश की स्थिति चिंताजनक है। इन अपराधों का लगातार बढ़ना इस बात का संकेत है कि सुरक्षा तंत्र या तो पर्याप्त मजबूत नहीं है या फिर अपराधियों में कानून का भय कम हुआ है। और जब अपराधी बेखौफ होता है, तो नतीजा ऐसी ही विभत्स घटनाओं के रूप में सामने आता है।

● प्रदेश का सामाजिक परिदृश्य और पुलिस की भूमिका

मध्यप्रदेश की भौगोलिक और जनसंख्या विविधता पुलिस प्रशासन के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है। दूर-दराज के आदिवासी क्षेत्रों से लेकर बड़े शहरों तक पुलिस की जिम्मेदारियाँ काफी व्यापक हैं। लेकिन इन चुनौतियों को देखते हुए भी पुलिस की तत्परता और संवेदनशीलता में सुधार की स्पष्ट आवश्यकता है। कई बार पुलिस संसाधनों की कमी, स्टाफ की कमी, प्रशिक्षण की कमी और आधुनिक तकनीक की अपर्याप्त उपलब्धता का हवाला दिया जाता है। परंतु जब सुरक्षा का प्रश्न हो, तो इन तर्कों से जनता की पीड़ा कम नहीं होती। समाज एक ही जवाब चाहता है सुरक्षा की गारंटी।

● क्या बदलाव की जरूरत है?

प्रदेश में महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ लगातार हो रही घटनाओं के बीच विशेषज्ञ कई स्तरों पर सुधार की बात करते हैं-

• गृह विभाग को समर्पित नेतृत्व: यदि मुख्यमंत्री अन्य विकास कार्यों में अधिक व्यस्त हैं, तो गृह मंत्रालय को एक अनुभवी मंत्री को सौंपना अधिक प्रभावी साबित हो सकता है।

• पुलिस को जवाबदेही के ढांचे में रखना: अपराध के गंभीर मामलों में देरी या लापरवाही होने पर कड़े प्रशासनिक कदम उठाए जाने चाहिए।

• कब तक चलेगा यह सिलसिला?: हर घटना के बाद उठने वाला यह सवाल “मध्यप्रदेश में कब तक बहन-बेटियों के साथ इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी?” हर बार बिना जवाब के रह जाता है। लेकिन हर नई घटना के साथ इस सवाल की पीड़ा और गहरी हो जाती है। सरकारें बदलती हैं, अधिकारी बदलते हैं, योजनाएँ आती हैं, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा आज भी जस का तस खड़ा है। यदि अब भी व्यवस्था नहीं जागी, तो भविष्य और भयावह हो सकता है। मध्यप्रदेश में हुई हालिया घटना केवल एक बच्ची के खिलाफ अपराध नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के लिए आईना है।

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