जिंदा दिली की मिसाल बनी धावक श्यामली ने दी कैंसर को मात



--प्रकाश पाण्डेय,
कोलकाता-पश्चिम बंगाल, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

• जब दर्द के बीच इलाज को दौड़ी थी श्यामली

• दो साल बाद की वापसी, जीता पदक

‘हिम्मत-ए-मर्दा, तो मर्दे खुदा।’ बेहद ही गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिला निवासी धावक श्यामली सिंह (26) को दो साल पहले ट्यूमर (कैंसर) होने का पता चला था। गरीबी की आड़ में चिकित्सा की कल्पना उसके लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसने हौसले को पस्त नहीं होने दिया, बल्कि इस चुनौती से दो-दो हाथ करने की ठानी। अक्सर लंबी दूरी के धावकों को ढेरों बाधाओं को तोड़ना होता है और मेदिनीपुर की इस बेटी ने भी ऐसी ही कई चुनौतियों को पार करते हुए जोरदार वापसी की। कोलकाता टाटा स्टील मैराथन 25 किलोमीटर की दौड़ में दिसंबर, 2019 में रजत पदक जीतने वाली श्यामली ने यह साबित कर दिया कि हौसले अगर बुलंद हो तो मंजिल खुद-ब-खुद करीब होती है।

• यूं हुआ श्यामली का इलाज

अपने दर्द भरे पलों को याद करते हुए श्यामली ने बताया कि पति सह कोच संतोष सिंह की मदद से उसने 2017 में मुंबई मैराथन में हिस्सा लिया और तीन घंटे आठ मिनट 41 सेकंड के समय के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। इससे उसे पुरस्कार के रूप में चार लाख रुपये मिले, जिसका इस्तेमाल अपने इलाज में किया। करीब दो साल तक चले कैंसर से जद्दोजहद के बाद वह जिंदगी की जंग जीतने में कामयाब रहीं और दिसंबर, 2019 में जोरदार वापसी के साथ ही कोलकाता टाटा स्टील मैराथन 25 किलोमीटर की महिला वर्ग में किरणजीत कौर के बाद दूसरे स्थान पर रहीं। संघर्ष के दिनों को याद करते हुए श्यामली ने कहा कि गरीब किसान परिवार से होने के नाते हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि हम इलाज को पैसे जुटा पाते। मेरे पति मेरे कोच भी हैं। इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी इसलिए हमने मिलकर संघर्ष करने का निर्णय लिया। पति के कहने पर बीमारी की स्थिति में मैंने तैयारी शुरू की और आखिरकार 2017 में मुंबई मैराथन में हिस्सा लिया। इलाज को पैसे चाहिए थे, सो शीर्ष तीन में रहने को प्रतिबद्ध थी। श्यामली ने कहा कि 17 किलोमीटर तक भारतीय महिला धावकों में शीर्ष पर थीं, लेकिन पेट की मांसपेशियों में खिंचाव आने की वजह से मुझे अपनी गति धीमी करनी पड़ी। इस बीच शरीर में पानी की कमी हो गई। बावजूद इसके मैं दौड़ी और मंजिल तक पहुंची।

श्यामली के पति संतोष ने बताया कि एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। ऊपर से हमारी लव मैरिज थी, सो घरवालों ने भी दूरियां बना ली थी। शादी के बाद से ही हमारा संघर्ष चलता रहा। मैं खुद भी पांच हजार मीटर का धावक था। उन दिनों हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि दोनों खेल का खर्च उठा सकते। ऐसे में मैंने नौकरी करने का निर्णय लिया और श्यामली की तैयारी चलती रही। इसी बीच 2017 में श्यामली को ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चला। पहले तो हम इलाज में आने वाले खर्च को लेकर चिंतित थे, लेकिन इस दुविधा की घड़ी में हमने जोखिम भरा निर्णय लिया और किसी तरह से श्यामली को मुंबई मैराथन में हिस्सा लेने को राजी किया। सच कहूं तो मैं भीतर से आश्वस्त था कि श्यामली इस वैतरणी को पार करने में कामयाब होगी और आखिरकार वह सफल भी हुई।

• श्यामली का पैगाम

अगर जिंदगी की चुनौतियों का डटकर सामना किया जाए तो सफलता जरूर मिलेगी। मौत कैंसर से नहीं, बल्कि खौफ हो सकती है। यदि आप किसी के सहारे की ताक में हैं तो आप कमजोर होंगे, और अगर अपनी कमजोरी को ही ताकत बना लिए तो विजय सुनिश्चित है यानी ‘हिम्मत-ए-मर्दा, तो मर्दे खुदा।’

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