फर्जीगिरी की हद हो गई : अफसरों ने बना डाला फर्जी रोडवेज बस स्टेशन, चलवा रहे थे खराब बसें



--संजय पाठक,
सहारनपुर-उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

■ निगम की अनभिज्ञता हजम होने लायक नही है

रोडवेज अफसरों की कारगुजारी के एक बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। लालची अफसरों के चालक गिरोह ने गुपचुप तरीके से सहारनपुर क्षेत्र में फर्जी बस डिपो बना डाला। इतना ही नही बिना अनुमति दूसरे डिपो में तैनात कर्मियों को यहां रखा गया। दुर्घटना बाद पकड़े जाने पर प्रदेश मुख्यालय का ये कहना कि "इसकी भनक लखनऊ स्थित परिवहन निगम मुख्यालय के अफसरों तक को नहीं हुई" हजम नही होती। ज्ञातव्य है कि बीते चार दिसंबर को जलालाबाद में हुई एक बस दुर्घटना की जांच के दौरान यह मामला सामने आया था। आनन-फानन में इस गंभीर मामले की तफ्तीश शुरू की गई।

हालांकि निगम के एमडी दीपक साहू ने पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है, जिसे औपचारिकता से ज्यादा कुछ नही माना जा सकता।

सहारनपुर क्षेत्र में तैनात रहे एक चर्चित अफसर के कारनामे से विभाग में हड़कंप मच गया। जानकारी के मुताबिक मुख्यालय की अनुमति लिए बगैर यह फर्जी डिपो बीते छह माह से चल रहा था। विश्वसनीय सूत्रों की माने तो सहारनपुर में ही एक बंद पड़े बस अड्डे को डिपो में तब्दील करने का प्लान एक विरोधी राजनीतिक दल के समर्थक अधिकारी की मानसिक उपज रही। स्थानीय स्तर पर इस फर्जी डिपो में बसों की मरम्मत और संचालन का काम होता था।

गौरतलब है कि यहां किसी मानक का कोई पालन नहीं किया गया था। जलालाबाद डिपो के फर्जी नाम से उन बसों का संचालन कराया गया जो कंडम हो चुकी थीं और जिनकी निलामी होनी थी। ताज्जुब के साथ ही इस सिंडिकेट के ऊंचे स्तर के मिलीभगत का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं कि प्राथमिक जांच के दौरान यहां से टिकटों की बिक्री का कोई रिकार्ड भी नहीं मिला है।

● बस हादसे में तीन की मौत के बाद खुली पोल

जानकारी के मुताबिक शाहजहांपुर स्थित जलालाबाद डिपो के नाम से चल रही बस (यूपी 42 एटी 0648) 04 दिसंबर 2020 को जलालाबाद क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। जांच में बस के ब्रेकफेल होने की बात सामने आई थी। हादसे में तीन यात्रियों की मौत हो गई थी। इस हादसे की जांच में पता चला कि हत्यारी बस दुर्घटनाग्रस्त होने से पहले इसी फर्जी डिपो से जुड़े लालची अफसरानों की निगहबानी से होकर निकली थी।

● एमडी ने कई और बिंदुओं पर मांगी रिपोर्ट

एमडी ने इस मामले की जांच कर रहे अधिकारियों से और कई बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है। जिसमें कितनी बसें डिपो से संचालित हो रही थीं। इन बसों की संख्या और उसे सफर करने वाले यात्री लोड फैक्टर, डीजल औसत और प्रति बस आय के बारे में पूछा है। जिसकी रिपोर्ट आनी बाकी है।

धीरज साहू, प्रबंध निदेशक यूपीएसआरटीसी, लखनऊ का कहना है कि बिना अनुमति बस डिपो संचालन का मामला गंभीर है। दावा किया जा रहा है कि इस मामले में विस्तृत आख्या के साथ मांगी गई जांच रिपोर्ट आने पर किसी भी रसूखदार दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। बहरहाल तीन जान की कीमतों पर रसुख और रुतबे का क्या आलम रहेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

आपको बता दे कि मुख्यालय के रिकार्ड में जलालाबाद डिपो बारे में किसी उल्लेख को लेकर स्पस्टता का अभाव दिख रहा है।

संभवतःजुलाई 2020 से शुरू हुआ था इस फर्जी बस डिपो का खेल।

आरोप है कि बिना अनुमति दूसरे डिपो में तैनात कर्मियों को रखा गया था। तो निगरानी समितियां क्या कर रही थी?

अगर डीजल एवरेज के मुताबिक कंडम हो चुकी बसे प्रतिदिन चल रही थी 100 किमी. तो बस के लोकेशन पता लगाने की कोशिश क्यो नहीं की गई?

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