आजाद ने ऐसा क्यों किया !



--राजीव रंजन नाग,
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

जम्मू कश्मीर में कांग्रेस को एक ऐसा झटका लगा है जिसके लिए शायद वो तैयार नहीं थी। दरअसल कांग्रेस ने मंगलवार को पार्टी सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद को जम्मू कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया था। लेकिन कांग्रेस के इस फैसले के 2 घंटे बाद ही आजाद ने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि आजाद ने ऐसा क्यों किया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आजाद इस बात से नाराज हैं कि पार्टी में उनकी सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, इसीलिए उन्होंने नई जिम्मेदारी से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि कांग्रेस ने अपनी सफाई में कहा कि गुलाम की तबीयत ठीक नहीं है लिहाजा उन्होंने नए पद को लेने से इनकार कर दिया।

बता दें कि गुलाम नबी उस जी-23 समूह के भी सदस्य हैं, जो पार्टी में कई बदलावों की बात करता है। ऐसे में आजाद के इस्तीफे के कई राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं और सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा भी है कि आजाद के रिश्ते कांग्रेस से ठीक नहीं हैं।

आजाद के इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या 73 वर्षीय आजाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे? क्या वह अलग पार्टी बनाएंगे। हालांकि, आजाद के एक करीबी ने साफ किया है कि वे फिलहाल कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। कांग्रेस में रहकर ही अपनी बात उठाते रहेंगे।

आजाद अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव पर फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाह रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बजाय 47 साल के विकार रसूल वानी को ये जिम्मेदारी दे दी। वानी गुलाम नबी आजाद के बेहद करीबी हैं। वे बानिहाल से विधायक रह चुके हैं। आजाद को यह फैसला पसंद नहीं आया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व आजाद के करीबी नेताओं को तोड़ रहा है। विकार रसूल वानी को जम्मू कश्मीर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पहले ये जिम्मेदारी अहमद मीर के पास थी।

5 राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद गुलाम नबी आजाद के घर पर जी-23 गुट की डिनर मीटिंग हुई थी। ये कांग्रेस के असंतुष्ट लोगों की मीटिंग थी, जिसके बाद ये आशंका जताई जा रही थी कि ये लोग विद्रोह कर सकते हैं। हालांकि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया और राहुल-प्रियंका ने अपने इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी। जिसे बाद में कांग्रेस नेताओं ने नकार दिया था।

कांग्रेस ने आजाद से संपर्क साधा था और उनकी मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया था। पर कहीं न कहीं पीएम मोदी और आजाद की नजदीकी का जिक्र होता रहा है। शायद इसी का खामियाजा था कि उनको कांग्रेस ने राज्यसभा में दोबारा नहीं भेजा।

इस बीच, ताजा घटनाक्रम ने उनकी नाराजगी की खबरों को फिर से हवा दे दी है। दरअसल, आजाद ने जम्मू-कश्मीर में पार्टी के प्रचार समिति का चीफ नियुक्त होने के महज 2 घंटे के बाद ही इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने आजाद को खुश करने के लिए कांग्रेस ने उनके करीबी विकार रसूल वानी को राज्य का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था। माना जा रहा है कि आजाद पार्टी के फैसले से खुश नहीं हैं।

जी-23 के नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में बदलाव की मांग की थी। हालांकि, पार्टी ने इस आवाज को फीका करने में सफलता तो पा ली लेकिन आजाद इस मसले पर अलग-थलग पड़ते दिखे।

नेशनल हेरल्ड मामले में सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ में आजाद ने केंद्र सरकार से इस जांच को रोकने की अपील की थी। लेकिन वह खुलकर इसके खिलाफ हुए पार्टी के विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लिया था। संसद में तीन दशक गुजार चुके कांग्रेस नेता आजाद 2021 में राज्यसभा से रिटायर हुए थे। उस दौरान उनके विदाई भाषण में बोलते हुए पीएम मोदी भावुक हो गए थे। पीएम मोदी ने रूंधे गले से आजाद संग बिताए पलों को याद किया और एक वक्तु तो रो पड़े। मोदी ने कहा कि गुलाम नबी आजाद के बाद इस पद (नेता प्रतिपक्ष) को जो संभालेंगे, उनको गुलाम नबी जी से मैच करने में बहुत दिक्कत पड़ेगी। मोदी ने आजाद को संसदीय लोकतंत्र में योगदान के लिए सैल्यू ट भी किया।

भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने के बाद सत्तारूढ़ सरकार के साथ उनकी निकटता के बारे में अटकलें भी तेज हो गईं। जी 23' में शामिल आजाद ने कांग्रेस आलाकमान को यह स्वीकार करने की नसीहत दी थी कि पार्टी कमजोर हुई और इसे मजबूत करने के लिए काम करने की जरूरत है। गुलाम नबी की मौजूदगी में सिब्बल ने कहा था कि कांग्रेस कमजोर हो गई है। यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए। वहीं, आनंद शर्मा ने कहा था कि मुझे किसी को यह बताने का अधिकार नहीं है कि हम कांग्रेस के लोग हैं या नहीं। हमारे बीच कोई भी खिड़की से नहीं आया है। हम सभी दरवाजे से चले हैं। हम छात्रों और युवा आंदोलन के माध्यीम से यहां तक आए हैं।

कपिल सिब्बल पार्टी छोड़ चुके हैं, वहीं आनंद शर्मा साइडलाइन चल रहे हैं। ऐसे में आजाद के इस्तीफे के अब कई मायने निकाले जा रहे हैं।

आजाद ने पार्टी की जम्मू-कश्मीर राजनीतिक मामलों की समिति से भी इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने कहा-आजाद ने नियुक्ति को एक डिमोशन के रूप में देखा क्योंकि वह पहले से ही पार्टी की अखिल भारतीय राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्य हैं। एक अनुभवी नेता, वह तत्कालीन राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं, एक केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया और कई महत्वपूर्ण पार्टी पदों पर कार्य किया।

पार्टी ने केंद्र शासित प्रदेश (जेके) में पूरी तरह से संगठनात्मक बदलाव किया था और श्री मीर के स्थान पर विकार रसूल वानी को नियुक्त किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा विकार रसूल वानी को पार्टी की जम्मू-कश्मीर इकाई का प्रमुख और रमन भल्ला को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के तुरंत बाद यह कदम उठाया गया है। एक बड़े पुनर्गठन में, गांधी ने मंगलवार को अभियान समिति, राजनीतिक मामलों की समिति, समन्वय समिति, घोषणा पत्र समिति, प्रचार और प्रकाशन समिति, अनुशासन समिति और जम्मू-कश्मीर इकाई की प्रदेश चुनाव समिति का गठन किया।

गांधी द्वारा गठित अभियान समिति में 11 सदस्य थे। जिसके अध्यक्ष आजाद थे। पार्टी पदों में नवीनतम फेरबदल ने कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर कांग्रेस में कई लोगों को नाराज कर दिया है। कांग्रेस के पूर्व -एमएलए हाजी अब्दुल राशिद डार ने एक समाचार एजेंसी के हवाले से कहा- "हम नाखुश हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर पीसीसी प्रमुख पर निर्णय लेने से पहले वरिष्ठ नेताओं से परामर्श नहीं किया गया।"

कांग्रेस के दो और नेताओं ने भी नवगठित समितियों से इस्तीफा दे दिया है, जिनमें से एक पूर्व विधायक गुलजार अहमद वानी ने भी प्रदेश चुनाव समिति से इस्तीफा दे दिया है। गुलजार अहमद वानी ने कहा “मैंने हाल ही में यूटी में पीसीसी प्रमुख की नियुक्ति के विरोध में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस समन्वय समिति से इस्तीफा दे दिया है। फैसला पार्टी के पक्ष में नहीं है"।

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