रोके जा सकते हैं बाल अपराध



भारतीय समाज में बाल अपराध की दर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसका कारण है कि वर्तमान समय में नगरीकरण तथा औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने एक ऐसे वातावरण का सृजन किया है जिसमें अधिकांश परिवार बच्चों पर नियंत्रण रखने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। वैयक्तिक स्वतंत्रता में वृद्धि के कारण नैतिक मूल्य बिखरने लगे हैं, इसके साथ ही अत्यधिक प्रतिस्पर्धा ने बालकों में विचलन को पैदा किया है। कम्प्यूटर और इंटरनेट की उपलब्धता ने इन्हें समाज से अलग कर दिया है। फलस्वरूप वे अवसाद के शिकार होकर अपराधों में लिप्त हो रहे हैं।
जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून-विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं। कानूनी दृष्टिकोण से बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य है जिसे कानूनी कार्यवाही के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है। बाल अपराध में बालकों के असामाजिक व्यवहारों को लिया जाता है अथवा बालकों के ऐसे व्यवहार का जो लोक कल्याण की दृष्टि से अहितकर होते हैं, ऐसे कार्यों को करने वाला बाल अपराधी कहलाता है।
सम्पूर्ण भारत के लिए सन 1876 में सुधारालय स्कूल अधिनियम बना जिसमें 1897 में संशोधन किया गया था। यह अधिनियम भारत के अन्य स्थानों पर 15 एवं बम्बई में 16 वर्ष के बच्चों पर लागू होता था। इस कानून में बाल-अपराधियों को औद्योगिक प्रशिक्षण देने की बात भी कही गयी थी। अखिल भारतीय स्तर के स्थान पर अलग-अलग प्रान्तों में बाल अधिनियम बने। सन 1920 में मद्रास, बंगाल, बम्बई, दिल्ली, पंजाब में एवं 1949 में उत्तर प्रदेश में और 1970 में राजस्थान में बाल अधिनियम बने। बाल अधिनियमों में समाज विरोधी व्यवहार व्यक्त करने वाले बालकों को प्रशिक्षण देने तथा कुप्रभाव से बचाने के प्रयास किये गए, उनके लिये दण्ड के स्थान पर सुधार को स्वीकार किया गया।

विभिन्न देशों की भांति भारत में भी बाल अपराधियों को सुधारने के लिये प्रयास किये गये हैं और बाल अपराध की पुनरावृत्ति में कमी आयी है फिर भी इन उपायों में अभी कुछ कमियां हैं जिन्हें दूर करना आवश्यक है। बालक अपराध की ओर प्रवेश नहीं करे, इसके लिए आवश्यक है कि बालकों को स्वस्थ मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराये जाएं, अश्लील साहित्य एवं दोषपूर्ण चलचित्रों पर रोक लगायी जाए, बिगड़े हुए बच्चे को सुधारने में माता-पिता की मदद करने हेतु बाल सलाहकार केन्द्र गठित किये जायें तथा सम्बन्धित कार्मिकों को उचित प्रशिक्षण दिया जाए। बाल अपराध की रोकथाम के लिए सरकारी एजेन्सियों, शैक्षिक संस्थाओं, पुलिस, न्यायपालिका, सामाजिक कार्यकताओं तथा स्वैच्छिक संगठनों के बीच तालमेल की आवश्यकता है।

ताजा समाचार

National Report



Image Gallery
राष्ट्रीय विशेष
  India Inside News