एक तस्वीर बनाने के वास्ते.....
क्या हम बदलते साल में कुछ नया करेंगे ? या यूँ ही हप्पी-हप्पी करते रहेंगे ?
मालिक इसी तरह दिन-महीने-साल गुज़रते जायेंगे। हम न बदले हैं और ना ही कुछ बदल पायेंगे।
ज़रा केंचुली उतारिए महराज! जिस देश-समाज में हैं उसकी भी चिंता इमानदारी से करिए।दिनरात लूट-खसोटकर ज्ञान देना छोड़िए साहेब!
अपने आसपास देखिए; हमारा समाज लगातार पतित होता जा रहा है।रुग्ण और आत्महीन। ऐसा सिर्फ़ एशियाई देशों में है, वह भी भारत अव्वल है। यूरोप हमसे कोई सौ साल आगे है।हम वहाँ से ख़ाली नक़ल कर पा रहे हैं, पर अकल के साथ नहीं।
गाँव में खेत नहीं जोत पा रहे हैं, मेड़ ज़रूर जोत लेते हैं।सबसे ज़्यादा मुक़द्दमे दीवानी अदालतों में चलते हैं; बेईमानों के।गाँवों में शायद ही कोई घर बचा हो।शहरों में सारी क्रिया सड़कों पर। थूकने से लेकर सब कुछ।घरों में एक पाँच फ़िट की जगह नहीं छोड़ेंगे, रोड़ छेंक कर गार्डेन बना लेंगे। घर में डस्टबिन नहीं, सारा कूडा़ पड़ोसी के सामने। तो आपका भी पड़ोसी आपके सामने। लो भई! दोनों ने फैला दिया अपना-अपना किया-धरा।
एक पड़ोसी बीमार है तो दूसरा रात दिन झमझमाए पड़ा है। मरो ससुर, हमसे क्या ?
बड़ा प्रधान से लेकर छोटा प्रधान तक सवालों के घेरे में।
हम दोष देते हैं राजनीति को। शायद यह भूल जाते हैं कि राजनीति में भी तो इसी समाज से लोग जाते हैं। हाँ, राजनीति को भी अपनी बर्बादी की ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकते। पर हमें एक बेहतर समाज दिये बिना एक बेहतर व्यवस्था की आस नहीं लगानी चाहिए।
आपको पता है; जब आपका कुत्ता सड़क पर ‘कर’ रहा होता है तो आप उस समय क्या कर रहे होते हैं?
आपको पता है कि क़तार में जब अाप आगे वाले को पीछे कर रहे होते हैं तो आप क्या कर रहे होते हैं?
आपको यह पता होगा कि जब आप मिलावट कर रहे होते हैं तब आप क्या कर कहे होते हैं? आपको यह भी पता होगा कि जब आप कमीशन पाने के चक्कर में एक बीमार को बेवजह जाँचें लिख रहे होते हैं तो आप क्या कर रहे होते हैं? आपको यह कभी पता चलता है जब आप किसी ग़रीब को रौंद रहे होते हैं तो आप क्या कर रहे होते हैं?
आपको पता है जब आप सड़क पर ओवरटेक कर रहे होते हैं और आपकी ‘प्रतिभा’ से लगने वाले जाम में फँसी एम्बुलेंस में किसकी जान जा रही है? आपको पता है कि जब आप किसी व्यवस्था की ‘बेईमान काट’ निकाल रहे होते हैं उससे कौन और किस तरह पिस रहा होता है?
कितने कर्म (दुष्कर्म) हैं जो हम कितनी बेरहमी और बेहयाई से करते रहते हैं।
और हाँ, यह मत भूलिए कि जो और जिस तरह से आप माल-असबाब सज़ा रहे हैं, उसकी क़ीमत कोई दूसरा चुकाएगा।
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा,
जब लाद चलेगा बंजारा।(नज़ीर अकबराबादी)
तारीख़ें रोज़ बदलती हैं। लेकिन हम...? नयी आमद में हम नये बनें, क्या हम इस बात के फ़िक्रमंद हैं? कुछ भी बड़ा नहीं करना है, बस आप दूसरों की फ़िक्र करें, निश्चित ही उस समय आपकी भी फ़िक्र कोई और कर रहा होगा।
तो आइए, एक वृहत्तर तस्वीर की कल्पना करें, उसमें अपने-अपने हिस्से का रंग भरें।ग़ौर करिए:
दुनियां में बादशाह है सो है वह भी आदमी।
और मुफ़्लिसो गदा है सो है वह भी आदमी॥
जरदार बेनवा है, सो है वह भी आदमी।
नैंमत जो खा रहा है, सो है वह भी आदमी॥
टुकड़े चबा रहा है, सो है वह भी आदमी॥1॥
नज़ीर अकबराबादी की उक्त नज़्म आदमीनामा के साथ शुभकामनाओं सहित !!