झोला लेके आवे ला...!



हाऊ फन्नी !
सीबीआई वाला सेंटा
झोला लेके आवे ला...!

दिसम्बर बीत गया, नयी जनवरी लग गई लेकिन सेंटा बाबा नहीं लौटा।यहीं यूपी में झोला लेकर घूम रहा है।जंगल-जंगल जिंगल वेल बजा-बजाकर गिफ़्ट बटोर रहा है। कल वह मैडम के यहाँ भी गया था। वहाँ से बहूत सारा गिफ़्ट लेकर गया। बेचारी डीएम थीं। बहुत समान-असबाब बटोरी थीं; जनता के लिए, जनता का और जनता से।मैडम का सब ‘पी नट’ ले गये सीबीआई वाले चचा लोग।इस पर स्त्री-विमर्श होना चाहिए।दलित-विमर्श होना चाहिए। विपक्ष को हड़ताल करनी चाहिए। अफसर लॉबी को एकजुट होना चाहिए। एक-एक जाति और धर्म खोज-खोजकर उनके हितों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरिए भाइयों, इस अन्याय के ख़िलाफ़। ईंट से ईंट बजना चाहिए।

बेचारा बाबू का भी गिफ़्ट सेंटा के हाथों लग गया; जादा नहीं, लगभग दो किलो सोना, कुछ लाख रुपिया। कैसे-कैसे छोटी-सी नोकरी में कुछ कर पाया। जादो जी की फैमिली पर सेंटा नज़र लगाये है। यह तो ग़लत बात है। राजनीतिक-विद्वेष है। बहनजी-भाईजी को फँसाने की चाल है। साधू-संन्यासी का जानें परिवार-सरिवार चलाना। कोई नोकरी-चाकरी तो थी नहीं, घर-परिवार चलाना भी कोई चीज़ है जी। तमाम ख़र्चे-बर्चे होते हैं।

आख़िर नदी ही तो खोदी गई थी। मुट्ठी भर रेत ही तो बिकी थी। कुछ पत्थर ही तो बेचे थे। कुछ लोग ही तो उजड़े होंगे। कुछ दरख्त ही तो कटे होंगे। कुछ हिम्मतें ही तो टूटी होंगी। कुछ भरोसा ही तो टूटा होगा। कुछ ईमानदार सिपाही-दरोग़ा ही तो मरे थे, काहें फड़फड़ा रहे थे सब?

मरने दीजिए नदियों को। खतम होने दीजिए नज़ारों को। वह तो फिर ज़िन्दा हो जावेगी पर जिन्हें किसी तरह से सिर्फ़ एक बार मनुष्य-जोनि मिली है, वे दुबारा कहाँ लौटेंगे इस धन्य-धरा पे?

ये सीबीआई वाले तो ग़रीब-गुरबा को नहीं भी छोड़ रहे हैं। उनका सब गिफ़्ट लिये जा रहे हैं। प्रजापति की डायरी पर काहे डायरिया हो रहा है भाई ? इस पर तो जश्न होना चाहिए। 'महान' प्रजापति की कृति ‘डायरी’ पर कुछ राजफास। अजब दुविधा है जी। विपक्ष कहता है कि यह चुनाव को देखते हुए हो रहा है; मन कहता है कि ऐसी चुनावी-चकचक बनी रहे, चुनाव कभी ना हो।चुनाव से पहले का सेंटा अभी बहुत दरवाज़े नॉक करेगा; गिफ़्ट बाँटने के लिए नहीं, बटोरने के लिए।

रात में मित्र-मिलन से लौटा हूँ। लखनऊ विश्वविद्यालय के पुराने साथियों का मिलन समारोह था, बहुत सारे जड़ीले जुटे। मज़ा आया। सबको भाया। बाटी-चोखा खूब चाभे!

देर रात तक यादों में तैरता रहा। अब नींद टूट गई है, कुछ शोर से और कुछ संगीत से।

कानों में कुछ बजने लगा है:

जिंगल वेलवा, जिंगल वेलवा
जिंगल वेलवा बाजे ला
सीबीआई वाला सेंटा
झोला लेके आवे ला !
हो ...झोला ले के आवेला ....!

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