हे साईनाथ !



अपने 23-24 वर्षों की पत्रकारिता में जिन लोगों से मैं सबसे अधिक प्रभावित हुआ, उनमें स्व• प्रभाष जोशी और पालागुम्मि यानी पी• साईनाथ प्रमुख हैं। जोशी जी अब रहे नहीं।जोशीजी का ‘कागद कारे’ मेरे लिए हमेशा ही इंतज़ार का सबब रहता था। बेहद भावपूर्ण और भाषिक-सौन्दर्य से भरा रहता था उनका कागद कारे। साईनाथ शोधपरक पत्रकारिता के अद्भुत मिसाल हैं। साईनाथ ने जनपत्रकारिता की जो लकीर खींची, उस तक पहुँचना नामुमकिन तो नहीं, मुश्किल ज़रूर है।

अकसर अपने बारे में सोचकर बहुत क्लेश होता है कि हम उनके हज़ारवें हिस्से तक भी ना कर सके। साईनाथ अपने को ग्रामीण संवाददाता या केवल संवाददाता कहते हैं और हम....? उन्होंने अपनी दृष्टि सामाजिक समस्याओं, ग्रामीण हालातों, गरीबी, किसान-समस्या और भारत पर वैश्वीकरण के घातक प्रभावों आदि गंभीर और ज़रूरी मुद्दों पर केंद्रित किया है।

मीडिया, क़ानून, विश्वबाजार, समाजवाद और राजनीति आदि पर उनके विचार बहुत स्पष्ट और तीखे रहते हैं। बदलते रूप के चलते मीडिया पर उनकी सहानुभूति कम रही है। वे मानते हैं कि मीडिया का ध्यान ‘खबर’ से ‘मनोरंजन’ तक बढ़ रहा है। शहरी अभिजात्य वर्ग के उपभोक्ताओं और जीवनशैली को अखबारों में प्रमुखता मिली है जो शायद ही कभी भारत में गरीबी की हकीकत की खबर लेकर आई है।

उनकी अवधारणा है, "मुझे लगता है कि अगर भारतीय प्रेस ने पांच फ़ीसदी को कवर किया है, तो मुझे नीचे के पाँच फ़ीसदी को कवर करना चहिए।” उनका यह वाक्य पत्रकारिता में जीवित बचे विचारों और सामाजिक-निष्ठा का एक शानदार स्लोगन है।

एक घटना कहीं पढ़ा था।

1993 में पी• साईनाथ ने एक फैलोशिप के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आवेदन दिया था। साक्षात्कार में उन्होने ग्रामीण भारत से रिपोर्ट करने के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बताया। एक सम्पादक ने उनसे सवाल किया, “मान लीजिए कि मेरे पाठक इन सब चीज़ों में दिलचस्पी नही लेते हैं ? साइनाथ का जवाब जानिए, "आप पिछली बार अपने पाठकों से कब मिले थे कि उनकी ओर से इस तरह का दावा कर रहे है ?" ऐसा प्रतिप्रश्न बहुत कम लोग कर सकते हैं। मद्रास (चेन्नई) के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे साईनाथ स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व राष्ट्रपति वी• वी• गिरि के पोते और कांग्रेस नेता वी• शंकर गिरि के भांजे हैं। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दू में उन्हें यदाकदा पढ़ता रहा हूँ। पर बहुत दिनों से नहीं कुछ देख पाया, क्योंकि हिन्दू का प्रिंट संस्करण मिलना मुश्किल हो रहा है। साईनाथ ने पढ़ने और समझने लायक कई अद्भुत पुस्तकें लिखी, नायाब रपटें बनायीं और शोध सरीखे बहुत सारा काम किया है।किसान-जीवन पर उनकी रपटें और आलेख भारत में भयावह सच्चाई का अमर्त्य-दस्तावेज हैं।

उनकी किताब ‘एवरी बडी लव्स ए गुड ड्राउट: स्टोरीज़ फ्रॉम इंडियाज़ पुअरेस्ट डिस्ट्रिक (Everybody Loves a Good Drought: Stories from India's Poorest Districts)‘ ग्रामीण भारत की एक मुकम्मल झाँकी है। अवसर निकालकर ग्राम्य-चेतना के अध्येताओं को इसे छूकर ही सही, कभी ज़रूर देखना चाहिए। साईनाथ के कुछ आलेखों को PARI (People’s Archives of Rural India) नामक एक साइट पर भी पढ़ा जा सकता है, जहाँ उनके कुछ आलेखों का कई भाषाओं में अनुवादरूप उपलब्ध है। साईनाथ सुदूर स्थानों की लम्बी और कठिन यात्राएँ करते हैं। वे बहुत साधारण-सी लगने वाली सूचनाओं और अनदेखी ख़बरों को भी विशिष्टता के सामने लाते हैं। यह उनकी मिशन पत्रकारिता, प्रतिबद्धता और सूक्ष्म दृष्टि का कमाल है। वे पत्रकारिता के सचमुच प्रतिमान हैं।

आज यह भी सोचता हूँ कि साईनाथ अचानक क्यों याद आ रहे हैं ? पर कुछ तो सबब होगा, जहाँ तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ।

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