सीबीआई मामले में मोदी या ममता किसकी हुई जीत



---रंजीत लुधियानवी, कोलकाता, 07 फरवरी 2019, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

देश भर में इन दिनों मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से दिया गया धरना और अदालत के निर्देश के बाद धरना समाप्त करने के बाद तरह-तरह की बातें की जा रही है। राज्य सरकार और केंद्र दोनों अदालत के फैसले को अपनी जीत मान रहे हैं। जीत नरेंद्र मोदी की हुई या ममता की! राजनीतिक दल के लोग पार्टी की लाइन पर बातें कर रहे हैं, लेकिन सामान्य व्यक्ति, जिनका राजनीति से कोई संबंध नहीं है, परेशान हैं कि आखिर क्या हो रहा है। ऐसे लोगों के लिए कानून के जानकारों की ओर से जुटाई जानकारी का विवरण इस तरह है-

● सुप्रीम कोर्ट के निर्देशपर सीबीआई चिटफंड मामले की जांच कर रही है। लेकिन प्रतिदिन की निगरानी के तहत काम नहीं कर रही है। इसलिए सीबीआई को कोई बड़ा कदम उठाने के पहले बार बार अदालत की शरण में जाना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जांच का अधिकार दिया है, प्रोटोकोल भंग करने का अधिकार नहीं दिया है। सीबीआई कोई 007 जेम्स बांड नहीं है कि लाइसेंस टू किल का अधिकार प्राप्त है।

● प्रोटोकोल जैसी एक वस्तु होती है। राज्य के एक उच्चाधिकारी से पूछथाछ के लिए परमिशऩ की जरुरत होती है। अदालत या राज्य सरकार से लिए मंजूरी लेनी पड़ती है। मन की मर्जी के मुताबिक कोलकाता पुलिस केंद्र सरकार के किसी बड़े अधिकारी से पूछताछ नहीें कर सकती है। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी पूछताछ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से परमिशऩ लेकर की थी।

● मदन मित्र, सुदीप बंदोपाध्याय, तापस पाल के मामले में राज्य सरकार ने सीबीआई को पूछताछ या गिरफ्तार करने में किसी तरह की बाधा नहीं डाली थी। इसका कारण यह था कि सीबीआई ने नियमानुसार परमिशऩ लिया था। उनके खिलाफ आरोप भी था। सीबीआई और केंद्र सरकार मुंह से कह रही है कि राजीव कुमार के खिलाफ सबूत नष्ट करने का आरोप है लेकिन सीबीआई के डाकूमेंट के मुताबिक राजीव कुमार एक गवाह है, अभियुक्त नहीं। इसलिए ही पर्याप्त परमिशऩ लिए बगैर पूछताछ नहीं की जा सकती।

● सीबीआई, केंद्र सरकार, भाजपा ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच हो रही है, इसलिए किसी परमिशन की जरुरत नहीं है। लेकिन परमिशऩ लेने की जरुरत है, यह सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट में जाने से साफ हो गया है। अगर परमिशन की जरुरत नहीं होती तब केंद्रीय सुरक्षा बल भेज कर पूछताछ जबरदस्ती की जाती।

● रविवार की रात के अंधेरे में बगैर किसी को बताए, परमिशन नहीं लेकर चोरों की तरह कोलकाता पुलिस के कमिश्नर के घर छापामारी की गई, पूछताछ के लिए नहीं बलिक गिरफ्तार करके राज्य के बाहर लेकर जाना चाहते थे। इसका कारण यह था कि अखबारों की सुर्खियां बनाना था कि ममता सरकार का पुलिस कमिश्नर गिरफ्तार। राज्य सरकार को पहले से ही योजना की जानकारी थी और उन्हें यह भी पता था कि सीबीआई ने कोई परमिशन नहीं ली है। इसलिए राज्य सरकार को अवसर मिल गया कि केंद्र सरकार को संघीय ढांचे और संविधान का पाठ पढ़ाया जा सके।

● सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बगैर गिरफ्तार नहीं कर सकते और निष्पकक्ष जगह पूछताछ करनी होगी, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से साफ है कि अदालत ने राज्य के इस आरोप की अनदेखी नहीं की कि केंद्र बदले की कार्रवाई कर रहा है।

● अदालत के आदेश का उल्लंघन करने और उसके बारे में नोटिस जारी करने का मतलब यह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि अदालत के आदेश का उल्लंघन हुआ है। बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि दोनों पक्ष की बातें सुने बगैर किसी तरह का फैसला नहीं किया जाएगा। नोटिस भेज कर राज्य सरकार का पक्ष जानने की कोशिश की गई है।

● कोलकाता पुलिस को सीबीआई को रोकने का अधिकार नहीं है, अगर वह कानून का पालन करके कार्रवाई करे। लेकिन सीबीआई अगर कानून और प्रोटोकोल को भँग करके काम करे तो उसे रोकने का अधिकार पुलिस के पास है। 20 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में यह बात ही साबित हो जाएगी।

बस, अब जो लोग झूठ बोल कर दुष्प्रचार करने में लगे हैं, उनके बारे में लोगों को पता चल जाना चाहिए कि सच्चाई क्या है और बंगाल में सेव इंडिया अभियान के तहत ममता बनर्जी ने केंद्र की सरकार को क्या और कैसे पाठ पढ़ाया है।

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