---डॉ• आनन्द पाण्डेय, हावड़ा, 18 मार्च 2019, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
शब्द जब चूक जाये तो समझो कुछ खो गया।
संतोष बस, ईश्वर को जो मंजूर था वह हो गया।
मगर इतिहास तो साक्षी रहेगा क्षति के घाव से।
रच गया पद चिह्न जो अपने चरित कै छाँव से।
सदी भी याद करती रहेगी उसे शहर तक गाँव से।
जननी का दूध जिसका था पिया खूब चाव से।
धन्य है वह धन्य माँ सौंपा सपूत मनोहर नाँव से।
हे जननी हे जन्मभूमि भले ही गया तेरे ठाँव से।
पर दे गया है आदर्श वो अपने कदम के छाँव से।
जिस पर चलेंगे लाखों सपूत बस उसी के याद से।
डाॅ• हेडगेवार गोलवलकर गुरू की ऋण मुक्ति में,
जपता रहा 'ऊँ राष्ट्राय स्वाहा इदं न मम' भाव से।
ऋषि था स्वप्न देखा 'चिन्मय भारत को बनाना' है।
उसे ही पूर्ण करने को हम लें शपथ श्रद्धाँजलि में।