कैदियों द्वारा आस्था स्वरूप भेजी गई तुलसी माला हनुमान जी को अर्पित की जाती है



---अभिजीत पाण्डेय,
पटना-बिहार, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
सचिव - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर की जहां हर दिन बेउर जेल में कैदियों द्वारा आस्था स्वरूप भेजी गई तुलसी माला हनुमान जी को अर्पित की जाती है। वहीं मंदिर की ओर से भी हर दिन कैदियों के लिए प्रसाद भिजवाई जाती है।

महावीर मंदिर के पुजारी उमाशंकर बताते हैं कि हर दिन बेउर जेल से होम गार्ड जवान शाम में तुलसी दल लेकर पहुंचता है। यह तुलसी बेउर जेल के कैदियों द्वारा जमाकर कर भेजी जाती है। कैदी हर दिन जेल में तुलसी के पौधे की देख रेख करते हैं और वहीं वहां से तुलसी तोड़कर मंदिर के लिए भेजते हैं। उमाशंकर कहते हैं कि मंदिर की ओर से हर दिन कैदियों के लिए प्रसाद भिजवाया जाता है।

उमाशंकर के अनुसार यह कैदियों के लिए एक तरह से आस्था की बात तो हैं कि वह इस तरह से खुद को भगवान से जोड़कर रखते हैं। साथ ही यह कैदियों के लिए प्रायश्चित का भी यह तरीका होता है। कैदी सोचते हैं कि उन्होंने जो भी गलती की जिसकी वजह से वे जेल में बंद है वे इस तरह अपने गलती की माफी भी भगवान से मांगते हैं।

महावीर मंदिर के पुजारी कौशल दास बताते हैं कि जेल से तुलसी माला आने की परंपरा पिछले 40 सालों से ज़्यादा समय से मैं खुद देखता आ रहा हूं। 1972 में जब मैं अपने दादा जी के साथ मंदिर में पूजा के दौरान रहता था तबसे मुझे याद है कि जेल से ही तुलसी माला यहां पहुंचती थी। उस समय मंदिर के सामने ही बांकीपुर जेल हुआ करता था, तब वहीं से कैदियों द्वारा तुलसी दल मंदिर में भेजा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि जब जेल बांकीपुर में हुआ करता था तब एक कैदी बीमार था। वह हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त था, उसकी इच्छा थी कि वह भगवान को तुलसी चढ़ाने के लिए जेल से भेजे। उस समय बांकीपुर जेल में तुलसी की खेती भी होती थी।

एक दिन जेल सुपरिटेंडेंट ने उस कैदी की बात मान ली। उसके द्वारा जमा किये गए तुलसी के पत्ते मंदिर भिजवाए गए। कहा जाता है कि उसके बाद उस कैदी की तबीयत भी ठीक हो गयी और वह जेल से भी बाहर आ गया। इसके बाद जेल सुपरिटेंडेंट ने यह परंपरा आगे भी शुरू कर दी।

■ कुणाल किशोर भी इसे मानते हैं अच्छी पहल

महावीर मंदीर न्यास समिति के अध्यक्ष कुणाल किशोर भी मानते हैं कि कई वर्षों से चली आ रही यह परपंरा एक अच्छी पहल के तौर पर शुरू की गई जिसे आज भी निभाया जा रहा है। हम आगे भी इस परम्परा को निभाते रहेंगे।

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