3 लाख किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गिरती है धरती पर बिजली



--अभिजीत पाण्डेय (ब्यूरो),
पटना-बिहार, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

बिहार में बिजली गिरने से गुरुवार को 100 लोगों की मौत हो गई। राज्य में यह पहली बार है कि जब एक दिन में बिजली गिरने से इतने अधिक लोगों की मौत हुई है। बिजली गिरना प्राकृतिक घटना है। हर सेकेंड धरती पर 50-100 बार बिजली गिरती है। सूर्य की सतह की तुलना में बिजली अधिक गर्म होती है। बिजली जिस रास्ते से होकर जमीन पर आती है वहां की हवा 15 हजार डिग्री फाॅरेनहाइट तक गर्म हो जाती है। यह गर्मी सूरज की सतह की गर्मी (10 हजार फाॅरेनहाइट) से अधिक है। आइए जानते हैं आसमान से बिजली क्यों गिरती है और इससे कैसे बचा जा सकता है।

आकाशीय बिजली इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज है। ऐसा तब होता है जब बादल में मौजूद हल्के कण ऊपर चले जाते हैं और पॉजिटिव चार्ज हो जाते हैं। वहीं, भारी कण नीचे जमा होते हैं और निगेटिव चार्ज हो जाते हैं। जब पॉजिटिव और निगेटिव चार्ज अधिक हो जाता है तब उस क्षेत्र में इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज होता है। अधिकतर बिजली बादल में बनती है और वहीं खत्म हो जाती है, लेकिन कई बार यह धरती पर भी गिरती है। आकाशीय बिजली में लाखों-अरबों वोल्ट की ऊर्जा होती है। बिजली में अत्यधिक गर्मी के चलते तेज गर्जना होती है। बिजली आसमान से धरती पर 3 लाख किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गिरती है।

बादल में जब बिजली बन रही होती है तब जमीन पर मौजूद चीजों का इलेक्ट्रिक चार्ज बदलता है। जमीन का उपरी हिस्सा पॉजिटिव चार्ज हो जाता है और नीचला हिस्सा निगेटिव चार्ज रहता है। मीनार, ऊंचे पेड़, घर या इंसान जब पॉजिटिव चार्ज हो जाते हैं तब उससे पॉजिटिव इलेक्ट्रिसिटी निकलकर ऊपर की ओर जाती है। इसे स्ट्रीमर कहते हैं।

बादल के निचले हिस्से में मौजूद निगेटिव चार्ज स्ट्रीमर की ओर आकर्षित होता है, जिससे बिजली धरती पर गिरती है। यही कारण है कि ऊंची चीजों पर बिजली गिरने की संभावना अधिक रहती है। अगर आसपास कोई ऊंची चीज न हो तो बिजली इंसान या धरती पर गिरती है।

उत्तरी बिहार के अधिकांश जिलों में 28 जून तक वज्रपात का खतरा बना हुआ है। इस दौरान भारी बारिश भी होगी। दरअसल बिहार से लेकर राजस्थान तक ट्रफ लाइन बनने से राज्य में कंवर्जेंस जोन बन गया है। यह जोन ऐसा क्षेत्र है, जहां पर गर्म एवं ठंडी हवाएं आपस में टकराती हैं। गर्म एवं ठंडी हवाओं के टकराने से बिजली कड़कती है, जिसे गांव-गिरांव की भाषा में ठनका गिरना कहते हैं।

पटना मौसम केंद्र के विज्ञानी संजय कुमार का कहना है कि वर्तमान में उत्तर बिहार के सीमावर्ती इलाकों में लगभग 3.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमीयुक्त एवं राजस्थान से आने वाली शुष्क हवाएं टकरा रही हैं। इस कारण भारी बारिश के साथ बिजली कड़क रही है, वज्रपात हो रहा है।

वज्रपात का दूसरा कारण वायुमंडलीय उथल-पुथल है। यानी, वायुमंडल में असंतुलन पैदा होना। जब वायुमंडल में ऐसा होता है, तब इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रीमानसून या मानसून के शुरुआती दौर में ऐसी स्थिति बनती है। इस वर्ष ठनका गिरने की घटनाएं कुछ ज्यादा हो रही हैं।

बिजली गिरने के चलते अधिकतर वे लोग हताहत होते हैं जो खुले में हों। घर और कार जैसी बंद जगह इंसान को बिजली से बचाती हैं। कार पर जब बिजली गिरती है तब वह टायर से होते हुए धरती में चली जाती है। इसी तरह घर पर बिजली गिरने से वह नींव के रास्ते धरती में जाती है। बिजली गिरते समय अगर कोई नल से निकल रहे पानी के संपर्क में हो या फिर लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल कर रहा हो तो उसे झटका लग सकता है।

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