आई•एफ•डब्ल्यू•जे• और अयोध्या का मुद्दा



--के• विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

आजाद भारत का तीव्रतम जनसंघर्ष (जन्मभूमि वाला) गत सप्ताह समाप्त हो गया। मगर चन्द मुजाहिदीनों के लिए यह जिहाद अभी जारी है। असद्दुद्दीन ओवैसी ने कहा कि इस्लाम में मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहती है। यही बात हिन्द इमाम तंजीम के सदर साजिद रशीद बोले कि : “मंदिर तोड़कर मस्जिद फिर बनाई जाएगी।” कई मुसलमानों ने तो इस्ताम्बुल के हाजिया संग्रहालय का उदाहरण दे डाला, जो 86 वर्षों बाद गत माह फिर इबादतगाह बन गयी।

फिलवक्त विषय यह है कि विगत सात दशकों में राष्ट्रीय मीडिया के एक विशेष और वृहद् हिस्से (कथित गंगा-जमुनी वाले) की अयोध्या पर भूमिका का निदान, समीक्षा होनी चाहिए। नैतिक पत्रकारिता का यह तकाजा है। पत्रकार पक्षधर नहीं होता। परन्तु सही और गलत को जानते हुए तटस्थ भी नहीं रह सकता। मकसद यही है कि वैचारिक छिछलापन, शाब्दिक उतावलापन, सोच का सतहीपन, इतिहास के प्रति अनपढ़ गंवारपन तथा नाफखोर मीडिया व्यापारियों आदि को दुबारा मौका न मिले। इसीलिए इस दौर की पत्रकारिता के रोल को परखना आवश्यक है।

भारतीय प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष स्व• न्यायमूर्ति राजेंद्र सिंह सरकारिया द्वारा 1990 में “अयोध्या और मीडिया” पर गठित जांच समिति के सदस्य के नाते मुझे (आई•एफ•डब्ल्यू•जे•, अध्यक्ष) विभिन्न प्रकाशन केन्द्रों पर जाना पड़ा था। मेरे साथी सदस्यों में ‘दिनमान’ के संपादक स्व• रघुवीर सहाय, पीटीआई के महाप्रबंधक एन• चन्द्रन तथा स्व• डॉ• नन्दकिशोर त्रिखा भी थे। हमारी रपट परिषद् को पेश की गयी थी।

मीडिया द्वारा अयोध्या-घटना की कवरेज की त्रासदी यह रही कि 20-23 दिसंम्बर 1949 के कुछ माह बाद सम्बंधित सूचनाएँ रोक दी गयीं थीं। उन्हीं दिनों रामलला की मूर्ति गुम्बद तले रखी गयी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री और यूपी मुख्यमंत्री के मध्य मसला उठा था। इसकी रपट कई बार छपी थी। जवाहरलाल नेहरु ने गोविन्द वल्लभ पन्त को रामलला की मूर्ति हटाने का निर्देश दिया। पर मुख्यमंत्री ने दंगे भड़क जाने का अंदेशा व्यक्त किया। बस यही विशेष और बड़ी खबर छपी थी तथा कुछ दिनों तक चली। फिर बंद हो गयी। अर्थात कांग्रेस सरकार द्वारा मीडिया प्रबन्धन बड़ा कारगर रहा।

फिर आये मशहूर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री, पूर्वी दिल्ली वाले हरिकिशन लाल भगत। रामजन्म भूमि के मसले पर मीडिया पर दबाव का प्रमाण एक और भी है। हिन्दू संगठनों की “धर्म रक्षा समिति’ ने 6 अगस्त 1983 को नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में प्रेस कांफ्रेंस की थी। यह मीडिया के साथ अयोध्या पर प्रथम बड़ी बैठक थी। सौ से ऊपर पत्रकारों के साथ विस्तार में संपन्न इस सभा में प्रश्नोत्तर की झड़ी लगी थी। यह प्रेस कांफ्रेंस सौ मिनट तक चली थी। मगर तुर्रा यह था कि दूसरे दिन (सात अगस्त 1983), के किसी भी पत्र-पत्रिका में अयोध्या विषयक एक अक्षर भी नहीं छपा। मानो वह कोई खबर ही नहीं थी। हालाँकि उसमें जनांदोलन को तीव्रतर करने का ऐलान था। शीघ्र ही हिन्दू जागरण मंच, विराट हिन्दू सम्मलेन (महाराजा कर्ण सिंह की अध्यक्षता वाला), और कांग्रेसी स्वाधीनता सेनानी तथा पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना आदि काशी, मथुरा और अयोध्या मुक्ति आन्दोलन से जुड़ गए थे। तब भी मीडियाजन ने प्रेस क्लब में धरती को डुला देने वाली इस खबर को सिगरेट के धुएं की फूंक में या दारू की पेग पर उड़ा दिया। नजरअंदाज कर दिया।

फिर हुआ इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आई•एफ•डब्ल्यू•जे•) का 21वां प्रतिनिधि-अधिवेशन। इसे फैजाबाद, साकेत और अयोध्या में कुल नौ किलोमीटर क्षेत्र के भवनों में आयोजित किया गया। तभी मैं इक्यानबे प्रतिशत वोट पाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हुआ था। सम्मेलन की तारीखें थीं 25 से 27 जून 1984 तक। याद रहे इन्हीं तिथियों पर नौ साल पूर्व, 1975 में इंदिरा गाँधी ने भारत पर इमर्जेंसी थोपकर प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी थी। अधिवेशन में भारत के 27 प्रदेशों से 840 प्रतिनिधि आये थे। इसके स्वागताध्यक्ष थे दैनिक ‘जनमोर्चा’ (फैजाबाद) के संपादक ठाकुर शीतला सिंह और महासचिव मदन मोहन बहुगुणा (दैनिक हिंदुस्तान), लखनऊ। साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ (मुंबई) के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख ए• राघवन, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के पं• उपेन्द्र वाजपेयी, एस• के• पाण्डे तथा सुजाता मधोक (अधुना डीयूजे अध्यक्ष और महामंत्री) लखनऊ से हसीब सिद्दीकी, कु• मेहरू जाफर, मोहम्मद अब्दुल हफीज, शरद प्रधान, रवीन्द्र कुमार सिंह, कैलाश चन्द्र जैन (झाँसी), इलाहाबाद से शिवशंकर गोस्वामी, कृष्णमोहन अग्रवाल, तुषार भट्टाचार्य और के• डी• मिश्र, काशी पत्रकार संघ के स्व• मनोहर खाडेकर, कार्टूनिस्ट जगत शर्मा, राजस्थान से पद्म सिंह भाटी, वशिष्ठ शर्मा, भंवर सिंह सुराणा आदि प्रतिनिधि रहे।

नागपुर के प्रतिनिधि मंडल में जयंतराव हरकरे और राजाभाऊ पोफली विशेष थे। यह दोनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्व• मोरोपंत पिंगल के आग्रह पर कई अन्य प्रतिनिधियों को लेकर आये थे। बाबरी ढांचे के गुम्बद के तले बने रामलला के अस्थायी मन्दिर के दर्शनार्थ वे सब गए थे। आंध्र तथा तमिलनाडु के पत्रकारों ने मुझे बाद में बताया कि उनकी महिला प्रतिनिधियों की ऑंखें भर आयीं थीं। उनसे रहा नहीं गया कि “हमारे ईष्ट सियाराम भगवान एक टाट पर मस्जिद तले विराजें!” यह घटना समस्त प्रतिनिधि शिविर में फ़ैल गयी। फिर कतार में सारे पत्रकार बाबरी ढांचे में विराजे रामलला के दर्शन के लिए गये। घर लौटकर कईयों ने देशभर के अपने हजारों पत्र-पत्रिकाओं में राम की दयनीय हालत का चित्रण किया। राष्ट्रीय मीडिया द्वारा अयोध्या की दुर्दशा सारी दिशाओं में, नैऋत्य से ईशान तक, चर्चित हो गयी। नवनिर्वाचित राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कई पदाधिकारियों ने अपने प्रदेश स्तरीय बैठकों में अयोध्या की हालत पर विचारयज्ञ कराया। नए राष्ट्रस्तरीय नेतृत्व में उपाध्यक्ष-द्वय स्व• एसवी जयशील राव (कर्णाटक) और प्रकाश दुबे (नागपुर में दैनिक भास्कर के समूह संपादक), महासचिव : कोचिन (केरल) वाले के• मैथ्यू राय, राष्ट्रीय सचिव रामदत्त त्रिपाठी (उत्तर प्रदेश), ए• प्रभाकर राव (आंध्र प्रदेश), चितरंजन आल्वा (इंडियन एक्सप्रेस, नयी दिल्ली) और मनोहर अंधारे (युगधर्म, नागपुर, महाराष्ट्र) थे।

इस त्रिदिवसीय अधिवेशन को संबोधित करने वालों में इंदिरा गाँधी काबीना के मंत्री स्व• नारायणदत्त तिवारी (उद्योग), स्व• विश्वनाथ प्रताप सिंह (वाणिज्य), स्व• वी• एन• गाडगिल (संचार) और आरिफ मोहम्मद खान (सम्प्रति केरल गवर्नर) थे। उद्घाटन यूपी के मुख्यमंत्री स्व• श्रीपति मिश्र ने किया था। उनके साथ पं• लोकपति त्रिपाठी तथा प्रमोद तिवारी आये थे।

विदेशी प्रतिनिधि भी आये थे। अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन (आईओजे, प्राग) के अध्यक्ष डॉ• कार्ल नोर्देर्नस्ट्रांग, ब्रिटिश नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष जॉर्ज फिंडले (स्कॉटलैंड), जर्मन पत्रकार यूनियन के महामंत्री डॉ• मैनफ्रेड वाईगैंण्ड तथा ऑस्ट्रिया और नेपाल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कई पर्यवेक्षकों की राय में इतना बड़ा विश्व स्तरीय सम्मेलन किसी भी आंचलिक इलाके (अयोध्या) में अभी तक कभी नहीं हुआ।

ज्ञात हुआ कि आई•एफ•डब्ल्यू•जे• के अयोध्या सम्मेलन के बाद रामजन्म भूमि पर कई संघर्षशील कार्यक्रम हुए। विश्व हिन्दू की धर्म संसद की उसी वर्ष ठीक ढाई माह बाद (अक्टूबर 1984) संपन्न सभा में रामजन्मभूमि न्यास स्थापित हुआ। फिर छः वर्षों बाद सोमनाथ-अयोध्या रथयात्रा द्वारा (1977 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे) लालचंद किशिनचंद आडवाणी ने संघर्ष को तीव्रता दी।

यूं तो आई•एफ•डब्ल्यू•जे• शुद्ध रूप से व्यावसायिक मीडिया संगठन है जिसमें नक्सली (झारखण्ड –छत्तीसगढ़), कांग्रेसी (आंध्र), भाजपायी (महाराष्ट्र), समाजवादी (बिहार और उत्तर प्रदेशीय), जनतादलीय (कर्णाटक) इत्यादि भिन्न विचारधाराओं वाले श्रमजीवी पत्रकार हैं। मगर लक्ष्य सबका केवल यही है कि स्वच्छ पत्रकारिता मजबूत हों। कमजोरियां कम करें। संगठन व्यापक बने। हर जनांदोलन में आई•एफ•डब्ल्यू•जे• की भागीदारी क्रियाशील हो।

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