कोरोना काल में घर पर कैसे मनाएं छठ : व्रत-पूजा से जुड़ी खास बातें



--डॉ• इन्द्र बली मिश्र,
काशी हिंदू विश्वविद्यालय,
वाराणसी-उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है। यह पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रेदश और झारखंड में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा का ये पर्व सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। इस दिन घाट पर जाकर पूजा करने का खास महत्व होता है। व्रती महिलाएं और उनका परिवार घाट पर जाकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं।

■ घर पर रहकर करें पूजा

हालांकि कोरोना वायरस की वजह से इस बार कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से सार्वजनिक जगहों पर छठ पूजा न करने की अपील की जा रही है। अगर आप भी छठ पूजा के लिए घाट पर नहीं जा पा रहे हैं तो परेशान होने की कोई बात नहीं। आप घर पर ही कुछ सावधानियों के साथ ये त्योहार मना सकते हैं।

सबसे पहले घर की अच्छी तरह सफाई कर लें। जिस कमरे में व्रती को रहना है, उसे साफ करने के बाद गन्ना और केले के पत्तों से एक मंडप बना लें। इस मंडप को फूलों और दीयों से सजाएं। एक तांबे के बड़े कलश में जल भर लें और इसे फूलों से सजा लें।

मंडप के बीच में एक साफ चौकी स्थापित करें और इस पर नया पीले रंग का वस्त्र बिछा लें। अब चौकी पर तिल और चावल से सूर्यदेव और षष्ठी माता की आकृति बना लें। इन पर तीन सुपारी रख लें और इसके सामने सारी पूजा की सामग्री वहां एक साथ रख दें। अर्घ्य देने से पहले इनकी विधिवत पूजा करें।

छठ का महापर्व चार दिनों तक चलता है। इन चार दिनों तक घर का माहौल सात्विक होना चाहिए. छठ की पूजा में गीतों का खास महत्व होता है। महिलाएं हर साल घर से घाट तक छठ के गीत गाती हुई जाती हैं। अगर आप इस साल घाट पर नहीं जा पा रहीं हैं तो घर में रह कर ही छठी मैया के गीत गाते रहें। इससे आपका घर पूरी तरह से भक्तिमय हो जाएगा।

■ सूर्य को अर्घ्य देने का खास महत्व

छठ पर्व में सूर्य को अर्घ्य देने का खास महत्व होता है। अगर आप घाट पर नहीं जा पा रहे हैं तो घर के किसी खुले हिस्से जैसे कि छत या बालकनी में किसी नए बड़े टब में पानी भरकर इसमें खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दे सकते हैं। सूर्य को अर्घ्य देते समय जल की धार में सूर्य की किरणें दिखाई देनी चाहिए। सुबह का अर्घ्य देने के बाद घर के सदस्यों को छठी मां का प्रसाद बांटे।

19 नवंबर को खरना मनाया जाएगा। इसके बाद 20 नवंबर को षष्ठी के दिन डूबते सूर्य को और शनिवार के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

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