असली भारत का साक्षात्कार है स्वामी विवेकानंद को जानना : प्रो• प्रधान



काशी-उत्तर प्रदेश,
इंडिया इनसाइड न्यूज़।

मैं उसको ईश्वर कहता हूँ, जिसको अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं। मानव जीवन की उन्नति करने वाला, अध्यात्म, सेवा, परोपकार के साथ जीने वाला व्यक्ति ही ईश्वर बनने का सामर्थ्य रखता है। वैसे तो सभी जीवों में ईश्वर का वास है लेकिन मनुष्य में कुछ अलग बात है। व्यक्ति की यात्रा भ्रम से सत्य की तरफ नहीं अपितु निम्नतर सत्य से उच्चतर सत्य की तरफ होनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद धर्मों में द्वैधता के सूत्र नहीं तलाशते थे अपितु वो सभी धर्मों के बीच के सामान सूत्रों को पकड़कर धार्मिक विविधता को विद्वेष का कारण बनने से रोकने का नजरिया रखते थे। इसका उदाहरण है परोपकार, हर धर्म यह सीख देता है इस्लाम में ये ज़कात है, तो ईसाई मत में चैरिटी उसी तरह सनातन हिन्दू धर्म में दान। ये सभी धर्मों के मध्य एक समान सूत्र है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आज संसार को धर्म की नहीं चरित्र की जरुरत है। क्योंकि आज संसार के सभी धर्म हास्यास्पद हो चुके हैं। सारे धर्म जिसके लिये हैं, उस मनुष्य की सार्वभौम समानता का विचार स्वामी जी ने वेदान्त से प्राप्त और प्रचारित किया। उपरोक्त बातें स्वामी विवेकानंद जयंती एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पुरा छात्र प्रकोष्ठ एवं राष्ट्रीय सेवा योजना केंद्रीय ईकाई द्वारा स्वामी विवेकानंद की भविष्य दृष्टि विषयक व्याख्यान के दौरान प्रो• अवधेश प्रधान ने कही।

उन्होंने कहा कि पूरब को पश्चिम तथा पश्चिम को पूरब से सीखने की जरुरत है। सर्व धर्म समन्वय के सिद्धांत और व्यवहार से ही धर्म का लोक और जगत कल्याणकारी विस्तार सम्भव है। स्वामी जी का यह विचार आगे चलकर महामना जैसे विभूतियों की प्रेरणा का भी स्रोत बना। स्वामी विवेकानंद ने धर्म के वास्तविक मर्म को उद्घाटित और व्याख्यायित किया। स्वामी विवेकानंद की दृष्टिकोण यह स्पष्ट उल्लेखित होता है कि सभी धर्मों के समन्वय और सामंजस्य से ही भारत के प्रगति के पथ पर तेज़ी से आगे बढ़ सकता है।

प्रो• प्रधान ने कहा कि स्वामी विवेकानंद को जानना समूचे भारत से साक्षात्कार करना है। स्वामी विवेकानंद के विचारों ने पूरी दुनिया को लाभान्वित किया।

इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन करते हुए बीएचयू एलुमनाई कनेक्ट के संयोजक डॉ• धीरेंद्र राय ने कहा कि प्रो• प्रधान ने भारत की समकालीन चुनौतियों का अत्यंत तार्किक और संवेदनासमृद्ध शैली में उल्लेख किया है। देश में साम्प्रदायिक संकीर्णता का प्राधान्य है, क्योंकि इसे प्रभुतासम्पन्न शक्तियों का संरक्षण और समर्थन हासिल है। प्रो• प्रधान को सुनना हमेशा अभिनव बोध से परिपूर्ण होना है।

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