मिशन 2024: भाजपा में फेरबदल, कई नेताओं का खत्म हुआ वनवास



--राजीव रंजन नाग,
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिल रही भारी सफलता से भयभीत सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी ने घर सुधारने की कवायद तेज कर दी है। अगले साल राज्य विधान सभाओं के चुनाव के भगवा पार्टी ने संगठन में फेर बदल कर अपनी मुहिम तेज कर दी है। 2014 तथा 2019 में लोक सभा चुनाव में पार्टी को मिली भारी सफलता से इतर भाजपा 2024 और उससे पहले 2023 के विधान सभा चुनावों में मिल रही सत्ता विरोधी रुझान को लेकर सतर्क हो गई है।

इन दोनों चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने वाली भाजपा ने आज मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों के रूप में सरकार से बर्खास्त नेताओं के लिए पार्टी ने नई भूमिकाओं की घोषणा की है। इसमें उन राज्यों के नए प्रभारी शामिल हैं जिनके मुख्यमंत्री प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। मिशन 2024 की तैयारियों में कोई चूक नहीं करना चाहती है। वह लगातार संगठन में फेरबदल और उलटफेर करती रह रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने भी सरकार के साथ साथ संगठन में अपना हस्तक्षेप बढ़ाते हुए रणनीतिक कमान संभाल ली है।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आज जारी एक आदेश के अनुसार गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी पंजाब और चंडीगढ़ को संभालेंगे। पंजाब, जो वर्तमान में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी की सरकार है, वह भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा अनेक तरह से फेल रही। अपने दम पर लड़ रही थी - क्योंकि इसे वरिष्ठ साथी अकाली दल ने कृषि कानूनों पर छोड़ दिया था, जिसे बड़े पैमाने पर विरोध के बाद खत्म कर दिया गया था। हरियाणा में त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब कार्यभार संभालेंगे। यहां, पार्टी ने सत्ता बरकरार रखी, लेकिन 2019 के सबसे हालिया चुनावों में कुछ जमीन खो दी। अगला विधानसभा चुनाव 2024 में होना है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद।

पिछले साल केंद्र सरकार से बर्खास्त कर दिए गए पूर्व केंद्रीय मंत्रियों के लिए, प्रकाश जावड़ेकर को केरल का काम सौपा गया है, जहां भाजपा अपने लिए जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही है। महेश शर्मा को त्रिपुरा में लगाया गया है, जहां पार्टी सत्ता में है लेकिन अगले साल की शुरुआत में वामपंथी गढ़ माने जाने वाले चुनाव में सीपीएम का सामना करेगी। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पिछले साल पश्चिम बंगाल में भाजपा को हराया था। भाजपा त्रिपुरा में विस्तार करना चाह रही है।

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने बिहार के पूर्व मंत्री मंगल पांडे को प्रभारी बनाया है, वहीं पार्टी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय पांडे के सह-प्रभारी होंगे। पिछले साल हार के बावजूद बीजेपी ने विधानसभा में अपनी सीटें बढ़ाईं। यह यहां राजनीति के एक आक्रामक ब्रांड (ममता बनर्जी) का पीछा करना जारी रखना चाहती है। ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी मोर्चे की दिशा में प्रमुख प्रेरकों में से एक हैं।

श्री पांडे सुनील बंसल के साथ काम करेंगे, जो ओडिशा और तेलंगाना के अलावा बंगाल की देखरेख करते हैं। बिहार की जिम्मेदारी पार्टी महासचिव विनोद तावड़े को दी गई है जो पहले हरियाणा के प्रभारी थे। नीतीश कुमार के अलग होने के बाद सरकार से बेदखल हुई बीजेपी को काफी झटका लगा है। बीजेपी बिहार में नए सिरे से काम करने में जुटी हुई है।

वह लोकसभा स्तर पर फोकस कर सीनियर लीडर्स को भेज ही रही है, राज्य का प्रभार भी दूसरे को दे दिया है। बीजेपी के महासचिव विनोद तावड़े को बिहार का नया प्रभारी बनाया गया है। हरीश द्विवेदी, बिहार के सह-प्रभारी बने रहेंगे। नीतीश कुमार ने पिछले महीने तेजस्वी यादव की राजद और कांग्रेस के साथ जदयू के गठबंधन को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने हाल ही में दिल्ली में भाजपा विरोधी मोर्चा का विस्तार करने की मुहिम के तहत अनेक दलों के नेताओं से मुलाकात की थी।

पड़ोसी राज्य झारखंड में लक्ष्मीकांत वाजपेयी बीजेपी के प्रभारी होंगे। यहां कि हेमंत सोरेन की सरकार भाजपा पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस से विधायकों को हटाने के लिए "गंदी राजनीति" करने का आरोप लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र माने जाने वाले वरिष्ठ नेता ओम माथुर पर भाजपा नेतृत्व का भरोसा बरकरार है। हाल ही में शक्तिशाली केंद्रीय चुनाव समिति के लिए नामित होने के बाद, श्री माथुर छत्तीसगढ़ का प्रभार भी संभालेंगे, जो उन कुछ राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस सत्ता में है। यहां अगले साल चुनाव हैं।

भाजपा का प्रमुख टीवी चेहरा संबित पात्रा पूर्वोत्तर राज्यों के समन्वयक होंगे। पात्रा को पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह पूर्वोत्तर के समन्वयक बनाए गए हैं। जबकि पार्टी के राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा को संयुक्त समन्वयक बनाया गया है। जिन प्रभारियों को बरकरार रखा गया है उनमें राजस्थान में अरुण सिंह और मध्य प्रदेश में मुरलीधर राव शामिल हैं। इनमें से अधिकांश नेताओं को नई जिम्मेदारियां दी गईं, जिनके पास कोई पार्टी पद नहीं था, लेकिन वे पहले चुनाव के प्रभारी रहे हैं।

जाहिर है, बीते कुछ सालों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से उसके सबसे पुराने साथियों के अलग होने से पार्टी में गठबंधन को लेकर नई सोच बन रही है। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्ता में आने के बाद भाजपा की व्यापक राष्ट्रीय पहुंच बनी है। दक्षिण के कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो देश के अधिकांश हिस्सों में वह सत्ता में भागीदार बन रही है।

ऐसे में भाजपा अपनी क्षमता को विस्तार देने में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के दबाव से बचना चाहती है। पार्टी के एक प्रमुख नेता का कहना है कि चूंकि भाजपा अब देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, ऐसे में लोगों की अपेक्षाएं और उम्मीद उससे कहीं ज्यादा हैं।

हाल के सालों में पार्टी ने महसूस किया है कि छोटे दलों के साथ गठबंधन से उसे ज्यादा लाभ मिला है। यह गठबंधन विभिन्न राज्यों के सामाजिक समीकरण को प्रभावित करते हैं, जिससे कि ज्यादा लाभ की संभावना पनपती है। दूसरी तरफ बड़े दलों के साथ गठबंधन में पार्टी को न सिर्फ अपना बड़ा हिस्सा छोड़ना पड़ता है, बल्कि उनके साथ काम करने में खुद को ही पीछे रखना पड़ता है। इससे पार्टी न तो अपने एजेंडे को पूरी तरह लागू कर पाती है और न ही जनता से किए वादों को।

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