नए पार्टी प्रमुख को पार्ट टाइमर नहीं होना चाहिए : पृथ्वीराज चव्हाण



--राजीव रंजन नाग,
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

22 साल बाद एक बार फिर 24 अकबर रोड (कांग्रेस मुख्यालय) पर गहमा गहमी देखी जा सकती है। राजधानी स्थित पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस का चुनाव कार्यालय कभी भी व्यस्त नहीं रहा। अक्टूबर में होने वाले पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की इच्छा रखने वालों के लिए मतदाता सूची प्रदान करने के लिए दो अतिरिक्त टेबल स्थापित किए गए हैं और अतिरिक्त कर्मचारियों को तैनात कर दिया गया है।

पार्टी ने आखिरी बार नवंबर 2000 में इस पद के लिए एक प्रतियोगिता देखी थी। जितेंद्र प्रसाद 2000 में सोनिया गांधी से हार गए थे और उससे पहले सीताराम केसरी ने 1997 में शरद पवार और राजेश पायलट को हराया था। 22 साल बाद हो रहे पार्टी प्रमुख के इस चुनाव में 22 साल बाद पार्टी को एक गैर गांघी परिवार का एक पूर्णकालीन अध्यक्ष मिलेगा। लोग पार्टी के कामकाज में भारी बदलाव की उम्मीद करते हैं, क्योंकि कांग्रेस को 1988 के बाद पहली बार गैर-गांधी अध्यक्ष मिलना तय है। जबकि दूसरे तबके का मानना है कि चुनाव के बावजूद कुछ भी नहीं बदलेगा। चेहरे भले ही बदल जायें.. लेकिन आने वाला कोई भी अध्यक्ष गांधी परिवार का “खडाऊं” पूज कर ही कोई फैसला लेगा।

फिलहाल अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए दो प्रत्याशी का नाम सामने आया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का और दूसरा नाम तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरुरू का है। गहलोत का पलड़ा भारी और माना जा रहा है कि उन्हें गांधी परिवार का समर्थन प्राप्त है। वह कह भी चुके हैं कि पार्टी आलाकमान उन्हें जो जिम्मेदारी देगा, वह उसका निर्वहन करेंगे। इस बीच अब चर्चा है कि मनीष तिवारी भी अध्यक्ष पद के लिए पर्चा भर सकते हैं। तिवारी कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाने के लिए जाने जाते हैं।

इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके एक सीनियर कांग्रेस नेता ने कहा- आज चीजें बदल गईं हैं। नेतृत्व किसी के खिलाफ कारर्वाई करने का साहस करने की स्थिति में नहीं है। वे सवाल करते हैं – क्या आज इंदिरा जी होंती तो जी-23 सरीखा कोई जत्था पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने की हिम्मत करता ..? अब तक चुनाव से ठीक पहले सक्रिय होने का चलन बन गया था लेकिन भारत जोड़ो यात्रा कर राहुल गांधी को यह समझ में आ गया है कि पार्टी आम लोगों से कट गई है और उस गैप का फायदा दूसरे दलों ने अछठा लिया..। ऐसा करने में वे सफल भी हुए हैं।

पार्टी को करीब से समझने वाले एक अन्य सीनियर कांग्रेसी ने कहा- अशोक गहलोत भले ही सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी बन जायें लेकिन जी-23 समूह उन्हें काम नहीं करने देगा। अंत में राहुल गांधी की हस्तक्षेप से ही पार्टी में फैसले लिए जायेंगे। राहुल 136 साल पुरानी पार्टी के ब्राण्ड हैं।

इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि जी-23 की मुख्य मांगें - उनके सहित कांग्रेस नेताओं का एक समूह, जिन्होंने आंतरिक चुनाव और पूर्णकालिक नेतृत्व की मांग की थी - पूरी हो गई हैं, "तो, मुझे लगता है, यह खत्म हो गया है।" लेकिन उन्होंने कहा कि नए पार्टी प्रमुख को "अंशकालिक नहीं होना चाहिए" और "लोगों से मिलने के लिए खुला" होना चाहिए। जाहिर है जी-23 समूह गहलोत के फैसलों पर नजर रखेगा।

श्री चव्हाण ने कहा, "लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कोई समस्या होने पर हम अपनी आवाज उठा सकते हैं। चुनाव प्रक्रिया को मजबूत किया जाना चाहिए।" यह पूछे जाने पर कि गांधी परिवार चुनाव नहीं लड़ेगा, चव्हाण ने कहा, "अगर राहुल गांधी आज भी चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो हम उनका स्वागत करते हैं। उन्होंने आगे कहा, "हम कभी भी एक परिवार के खिलाफ नहीं थे, यह बकवास है।" हम सिर्फ यह चाहते थे कि जो भी मुखिया हो वह चुनाव के माध्यम से आए और लोगों से मिलने के लिए उपलब्ध हो। सोनिया गांधी ने उन दोनों मांगों को स्वीकार कर लिया।

अशोक गहलोत के बारे में उन्होंने कहा- राजस्थान में वह अपनी स्थिति बनाए रखने और पार्टी प्रमुख बने रहने का हम विरोध करेंगे। हमें अभी यह तय करना है कि उनका समर्थन करना है या नहीं। क्या कांग्रेस अध्यक्ष अंशकालिक नौकरी है? क्या मुख्यमंत्री अंशकालिक नौकरी है?" मुझे लगता है कि दो साल के बाद मांगों को स्वीकार करने के बाद हमारा (जी-23) काम खत्म हो गया है। हम कोई समानांतर समूह नहीं थे।"

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