गंगा की गोद में श्रावणी उपाकर्म की परंपरा का निर्वहन किया गया



--संजय पाठक,
वाराणसी-उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

प्रतिवर्ष सावन माह की पूर्णिमा तिथि को विप्र समाज गंगा की गोद में अपना श्रावणी उपाकर्म करता है। इसी क्रम में आज विप्र समाज ने अहिल्याबाई गंगा घाट पर प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय व संस्कार का उपाकर्म किया। यह श्रावणी उपाकर्म को हिमाद्री संकल्प के साथ किया गया। वैदिक कालीन परम्परा को अक्षुण रखते हुए काशी का विप्र समाज प्रतिवर्ष श्रावण माह के पूर्णिमा तिथि को गंगा तट रक्षाबंधन के दिन यह कार्य सदियों से करता चला आ रहा है।

रक्षाबन्धन के पर्व पर जहां बहने भाइयों को सुबह से ही राखी बांधकर उनकी दीर्घायु की प्रार्थना कर रहीं है तो भाई उनकी रक्षा का संकल्प ले रहे हैं। वहीं सदियों की परम्परा को अहिल्याबाई घाट पर विप्र समाज ने संपन्न किया। शुक्लयजुर्वेदीय माध्यान्दिनी शाखा के ब्राह्मणों द्वारा शास्त्रार्थ महाविद्यालय के वैदिक आचार्य पंडित विकास दीक्षित के आचार्यत्व में वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच विप्र समाज का श्रावणी उपाकर्म गंगा तट पर मनाया गया।

इस सम्बन्ध में वैष्णव सम्प्रदाय के अर्चक आचार्य चंचल उपाध्याय (असवारी) ने बताया कि इस पर्व के दिन गोमय, गौमूत्र, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत मिश्रित पंचगव्य से स्नान कर भस्म लेपन किया जाता है। उसके बाद कुशा, दुर्वा व अपामार्ग से मार्जन कर ब्राह्मणों ने अंत:करण की शुद्धि के साथ सूर्य का ध्यान कर तेज प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके बाद विप्र समाज के सभी लोग नूतन यज्ञोपवीत धारण करते है।

विप्र समाज के संयोजक आचार्य विकास दीक्षित ने बताया कि श्रावणी द्वारा वर्ष पर्यन्त ज्ञात-अज्ञात पापकर्मों के प्रायश्चित के साथ जगत कल्याण की कामना भी की जाती है। प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय व संस्कार के लिए यह श्रावणी उपाकर्म पर्व मनाया जाता है। प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में ब्राह्मण व बटुक इसको करते आ रहे थे, किन्तु इस वर्ष कोरोना संक्रमण को देखते हुए संख्या न्यूनतम की गई है।

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