दारा शिकोह एक दीप स्तम्भ हैं



--के• विक्रम राव
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अगर मगर है कि यदि समावेशी दारा शिकोह शाहजहां के बाद (31 जुलाई 1652) मुगल बादशाह बन जाता तो? आज के भूगोल का पुराना इतिहास ही भिन्न होता। दरियादिल मुगल वली अहद मुहम्मद दारा शिकोह की सनातनी आस्था और जिज्ञासा एक बहुलतावादी भारत की बुनियाद बनाती। पाकिस्तान न बनता। जिन्ना इतिहास में उल्लिखित ही न होते। इस इस्लामी रियासत के नवाब जिन्ना न बनते। मगर प्रारब्ध बड़ा क्रूर निकला। होनहार ही ऐसा था।

आज के इस्लामी तनाव के परिवेश में दारा शिकोह बहुत याद आते हैं। उस मध्यकालीन दौर में यह मुगल युवराज वस्तुत: सेक्युलर था। सर्वधर्म अनुयायी था। मगर विषाद होता है कि आजाद भारत में जालिम औरंगजेब के नाम वाले रोड और लेन (28 अगस्त 2015) के दिन, 65-वर्ष देरी से, बदले गये। मगर दारा शिकोह के नाम पर प्रथम बार नयी दिल्ली में (फरवरी 2017) किसी मार्ग का नामकरण हुआ। वह ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड जेम्स डलहाउजी रोड था। यह उस व्यक्ति के नाम पर जिसने भारतीय रियासतों के शासकों के राज को हड़पने हेतु कानून बनाया था कि जो भी देशी राजा या रानी निसंतान मर जाते है उनकी रियासत साम्राज्य में विलय कर दी जायेगी। नतीजन झांसी का राज कब्जिया लिया गया था।

दारा की अध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत महान सूफी संतों के संपर्क में आने से हुयी। वे मियां और मुल्लाशाह बदाक्षी के बहुत नजदीक थे। उन्होंने सूफीवाद का अध्ययन किया और कादिरी सूफी सिलसिला के सदस्य बने। वे मुल्लाओं के कटु विरोधी थे क्योंकि मुल्ला अक्सर इस्लाम की गलत व्याख्या कर धर्मान्धता और असहिष्णुता को बढ़ावा देते थे। सूफीवाद के उनके गहन अध्ययन से दारा शिकोह को यह अहसास हुआ कि ईश्वर के साथ एकाकार होने के लिए न तो हमें मुल्लाओं की जरुरत है और न ही कर्मकांडों की। जरुरत है तो केवल ईश्वर के प्रति प्रेम और उसके आगे निस्वार्थ भाव से समर्पण की।

यहां उल्लेख हो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का, जो आगरा न जाकर दारा की मजार पर ही क्यों गये थे? ओबामा युगल ने यह भी जता दिया कि वे पर्यटक नहीं हैं, हालांकि हर राज्य अतिथि द्वारा मलिका मुमताज महल का मकबरा देखना एक मनोरंजक रिवायत बन गई है। उस लीक से हटकर बराक ओबामा ने शाहजहां की इमारत के बजाय उनके परदादा की समाधि देखकर खण्डित उपमहाद्वीप के समाज को नये संकेत दिए हैं। लालकिला के प्राचीर पर ओबामा जा सकते थे। कुतुब मीनार की ऊंची, पुरानी चोटी को देख सकते थे। तो हुमायूं का मकबरा ही क्यों? गत दो दशकों तक जीर्णशीर्ण पड़े और विश्व धरोहर (1993) बनने के बाद से संवारे गये इस मकबरे को अपनी यात्रासूची में शामिल कर ओबामा ने परोक्ष पैगाम दिए हैं। दारा शिकोह यही दफन हैं।

मकबरे में अतिथि रजिस्टर पर ओबामा ने लिखा भी कि : ‘‘साम्राज्यों के पतन अभ्युदय के दौर में भारत विश्व में नई ऊँचाइयां छूता रहा।’’ बराक और मिशेल ओबामा ने हुमायूं के मजार के निकट वाली कब्र गौर से देखी। वह उनके प्रपौत्र युवराज दारा शिकोह की है जो इतिहास का एक अत्यन्त त्रासद, कारुणिक पुरुष रहा।

आज की काशी पर मुगलराज की जजिया के अलावा यात्रीकर भी लगता था। दारा शिकोह ने निरस्त कराया, जकात फिर औरंगजेब ने थोप दिया। दारा शिकोह का बनारस से बहुत लगाव था। वह बनारस के पंडितों का बहुत सम्मान करता था और उनसे हिन्दू धर्मग्रंथों के बारे में जानकारी प्राप्त करता था। दारा ने वट भूमिक नामक एक संस्कृत ग्रंथ का अनुवाद भी किया था। एक जगह दारा कहते हैं कि उसने सूफी मत ग्रहण किया था। जब हिन्दू फकीरों से उसे पता चला कि दोनों मतों केवल शाब्दिक अंतर है, उसने 1658 में मजमून उल-बहरेन लिखा जिससे दोनों धर्मों में समंवय हो सके।

खासकर, आलमगीर औरंगजेब के सन्दर्भ में। सिवाय संहार, हत्या, तोड़फोड़, जजिया, धर्मांतरण, ईदगाह (मथुरा) और ज्ञानवापी (काशी) बनाने के इस छठे मुगल बादशाह ने हिन्दुस्तान को दिया ही क्या? हाँ, अपने तीन सगे भाइयों की लाशें जरूर दीं। अब दिल्ली में औरंगजेब मार्ग का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग रखकर भाजपा शासन ने एक आदर्श भारतभक्त मुस्लिम वैज्ञानिक का सम्मान तो किया है।

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