अनुवाद बहुत कठिन साहित्यिक काम है : डॉ• फॉर्नेल



लखनऊ,
इंडिया इनसाइड न्यूज़।

एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना बहुत कठिन तो होता है; ख़ास तौरपर तब और जब मामला दो अलग-अलग संस्कृतियों का हो। तब यह अनुवाद और भी जोखिम भरा काम हो जाता है। यह बात कही जर्मनी के सेंट जार्ज आगस्ट विश्वविद्यालय, ग्योटिंगेन से भारत यात्रा पर आई डॉ• इनेस फॉर्नेल ने। डॉ• फार्नेल हिन्दी-जर्मन अनुवादक हैं और जर्मनी के उक्त विश्वविद्यालय के इंडोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे हिन्दी पढ़ाती हैं।

डॉ• इनेस फॉर्नेल हिन्दी-दिवस की पूर्व संध्या पर लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में बतौर प्रमुखवक्ता के रूप में शामिल हुईं। उन्होंने कथाकार शिवमूर्ति की रचनाओं पर हो रहे हिन्दी से जर्मन भाषा में अनुवाद के बहाने से अनुवाद में आने वाली कठिनाइयों पर भी विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि यूँ तो सामान्य हिन्दी का ही अनुवाद सरल नहीं है। यदि इसके साथ बहुत स्थानीयता और दुरूहता लिए हो तो यह काम बहुत ही कठिन हो जाता है। इसका कारण है कि ऐसे तमाम स्थानीय शब्दों से सामना करना पड़ता है जो शब्दकोश में भी नहीं मिलते।

वे यहाँ जर्मनी में हिन्दी की स्थिति और साहित्यिक अनुवाद विषयक एक संगोष्ठी में अपनी बात रख रही थीं।

डॉ• फॉर्नेल ने कहा कि अनुवाद एक जोखिम भरा काम तो है ही, इसका प्रकाशन भी कम कठिन काम नहीं है। उन्होंने बताया कि भारत की तुलना में वहाँ जर्मनी में अनुवाद के पाठकों की संख्या कम है, अत: ऐसी पुस्तकें प्रकाशित करने और उनके विक्रय में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है; फिर भी वहाँ यह काम बहुत गंभीरता से हो रहा है।

डॉ• फार्नेल ने बताया कि भारतीय प्रायद्वीप और एशियाई देशों की संस्कृति पर काम करने वाली जर्मन संस्था लिटराटुर फोरुम इंडियेन, (जर्मनी) इस दिशा में बहुत काम कर रही है। उल्लेखनीय है कि फोरुम न सिर्फ़ भारतविद्या सम्बन्धी सेमिनार आदि आयोजित करता है; बल्कि संस्था अबतक हिन्दी की कई रचनाओं का जर्मन भाषा में अनुवाद और इनका प्रकाशन भी कर चुकी है।कुछ अनुवाद चल रहे हैं।

उन्होंने बताया कि इसी साल हिन्दी की लेखिका सारा राय और अरुण सिंह को इस सेमिनार में भाग लेने के लिये जर्मनी आमंत्रित किया गया था। जर्मनी के इस सेमिनार में इससे पूर्व वरिष्ठ साहित्यकार उदयप्रकाश, गीतांजलिश्री आदि भाग ले चुके हैं।

संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में शामिल वरिष्ठ साहित्यकार शिवमूर्ति ने कहा कि जिस तरह से से विदेशी अध्येयता अपने काम को पूरी निष्ठा से करते हैं, वैसा कदाचित् हम नहीं कर पाते। हिन्दी में तो ऐसा ख़ास तौर पर देखा जाता है। शिवमूर्ति ने बताया कि अपने अनुवाद के दौरान डॉ• इनेस फॉर्नेल कैसे महीन से महीन बातों को ध्यान में रखती हैं। शिवमूर्ति के चर्चित उपन्यास त्रिशूल का भी अनुवाद डॉ• फार्नेल कर रही हैं।

कार्यक्रम में वक़्ता के रूप में अरुण सिंह ने कहा कि हमें अपनी भाषा के प्रति अनुराग और काम की गति के लिए डॉ• फार्नेल जैसी अध्येयताओं से सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि डॉ• फार्नेल जिस विश्वविद्यालय से आती हैं; वहाँ से अबतक लगभग चालीस से भी अधिक नोबेल विजेताओं के होने मात्र से ही उनकी कार्यनिष्ठा और मेधा स्वत: सिद्ध हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि डॉ• फार्नेल हीडलबर्ग विश्वविद्यालय प्राध्यापक गौतम लियु के साथ मिलकर जर्मन भाषी छात्रों के लिए “हिंदी बोलो!" नाम से एक पाठ्य सामग्री की रचना की है। यह दो खंडों में है। पुस्तक का 1 खंड हाल ही में अपने 6वें संस्करण के रूप में सामने आया है। "हिंदी बोलो!" पुस्तक जर्मन विश्वविद्यालयों के साथ ही वियना और ज्यूरिख के कई स्थानों पर उपयोग में लायी जा रही है।

कार्यक्रम की रूपरेखा और धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ• योगेन्द्र प्रताप सिंह और कुशल संचालन प्रो• रीता चौधरी का था।

इस अवसर पर वरिष्ठ कवि सुभाष राय, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ• रामकठिन सिंह, प्रो• पवन अग्रवाल, प्रो• सूरज बहादुर थापा, प्रो• भक्तराज शास्त्री, प्रो• परशुराम पाल, प्रो• कालीचरण स्नेही, प्रो• अलका पांडेय, प्रो• श्रुति, प्रो• रीता चौधरी, आदि व बड़ी संख्या में छात्र तथा गणमान्य हिन्दी प्रेमी शामिल हुए।

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