हमेशा संकटमोचक की भूमिका में रहे विजयवर्गीय



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्र देश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा में संतुलित स्वर और विचारों की गरिमा के साथ दिया प्रेरक संबोधन

■विजयवर्गीय के लोकतांत्रिक दृष्टिकोण में दिखी अटल जी के संसदीय परंपरा की झलक

मध्यप्रदेश की राजनीति में जब भी गंभीर, संतुलित और वैचारिक रूप से समृद्ध भाषणों की चर्चा होती है, तो नगरीय निकाय एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का नाम स्वतः ही सामने आता है। हाल ही में विधानसभा के विशेष सत्र में दिया गया उनका संबोधन केवल एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं था, बल्कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक मर्यादाओं और समावेशी सोच का जीवंत उदाहरण बन गया। इस संबोधन ने यह स्पष्ट कर दिया कि राजनीति केवल विरोध या आरोप-प्रत्यारोप का मंच नहीं, बल्कि राष्ट्र और प्रदेश के विकास की साझा जिम्मेदारी का माध्यम भी हो सकती है। कैलाश विजयवर्गीय का भाषण इसलिए भी विशेष रहा क्योंकि उसमें पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व. अटल बिहारी वाजपेयी की संसदीय परंपराओं और भाषाई सौम्यता की झलक स्पष्ट दिखाई दी। अटल जी जिस प्रकार तथ्य, भाव और राष्ट्रहित को एक सूत्र में पिरोकर अपनी बात रखते थे, उसी परंपरा को विजयवर्गीय ने अपने शब्दों में आगे बढ़ाया। उनका स्वर न तो कटु था और न ही उत्तेजित, बल्कि आत्मविश्वास से भरा, संतुलित और सभी पक्षों को साथ लेकर चलने वाला था।

● मुख्यमंत्रियों के उल्लेखनीय कार्यों का किया जिक्र

कैलाश विजयवर्गीय ने मध्यप्रदेश के गठन के बाद से लेकर वर्तमान तक की विकास यात्रा का क्रमबद्ध और तथ्यात्मक उल्लेख किया। उन्होंने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक के कार्यकाल में हुए उल्लेखनीय कार्यों को सामने रखा। यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि वे इतिहास को किसी एक दल या सरकार की बपौती नहीं मानते, बल्कि उसे एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में देखते हैं, जिसमें हर सरकार का योगदान किसी न किसी रूप में जुड़ा होता है। विजयवर्गीय ने जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में हुए विकास कार्यों- जैसे शहरी अधोसंरचना, आवास योजनाएं, नगरीय सेवाओं का विस्तार और जनकल्याणकारी कार्यक्रमों का उल्लेख किया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने विपक्षी सरकारों के सकारात्मक प्रयासों को भी स्वीकार करने में संकोच नहीं किया। विशेष रूप से उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का निष्पक्ष उल्लेख कर यह संदेश दिया कि लोकतंत्र में प्रशंसा और आलोचना दोनों का स्थान है, बशर्ते वह तथ्य और सद्भावना पर आधारित हो।

● भाषण में रखा निष्पक्षता का भाव

यह समानता और निष्पक्षता का भाव ही कैलाश विजयवर्गीय को एक परिपक्व और संवेदनशील नेता के रूप में स्थापित करता है। आज के समय में, जब राजनीति अक्सर ध्रुवीकरण और कटुता की ओर बढ़ती दिखाई देती है, ऐसे में उनका यह दृष्टिकोण एक स्वस्थ परंपरा की पुनर्स्थापना करता है। विधानसभा जैसे पवित्र और गरिमामय मंच पर उन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी बात रखी, जिसमें न तो व्यक्तिगत आरोप थे और न ही राजनीतिक विद्वेष। उनका उद्देश्य केवल प्रदेश की प्रगति और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को सुदृढ़ करना प्रतीत हुआ।

● अनुभवी और संवेदनशील नेता है कैलाश

विजयवर्गीय की राजनीतिक यात्रा भी उनके इस व्यक्तित्व को पुष्ट करती है। वे लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं और संगठन से लेकर सरकार तक विभिन्न जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुके हैं। एक जनप्रिय नेता के रूप में उनकी पहचान केवल उनके पदों से नहीं, बल्कि जनता से उनके जीवंत संवाद और संवेदनशील व्यवहार से बनी है। नगरीय निकाय एवं आवास जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने शहरी विकास को मानवीय दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है।जहां आवास केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन का आधार है।

● संवादप्रिय और संतुलित नेता

यह भी उल्लेखनीय है कि कैलाश विजयवर्गीय को पूर्व में कई बार विवादित बयानों से जोड़ने का प्रयास किया गया। किंतु यदि उनके सार्वजनिक जीवन और कार्यों को समग्रता में देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि वे मूलतः एक संवेदनशील, संवादप्रिय और संतुलित नेता हैं। राजनीति में सक्रिय रहते हुए किसी भी नेता के वक्तव्यों को संदर्भ से अलग कर प्रस्तुत करना आसान होता है, लेकिन विजयवर्गीय ने अपने आचरण और कार्यों से बार-बार यह सिद्ध किया है कि उनकी मूल प्रवृत्ति सकारात्मक और रचनात्मक है। विधानसभा के विशेष सत्र में दिया गया उनका संबोधन विपक्षी दलों के लिए भी एक बड़ा संदेश था कि असहमति के बावजूद सम्मान बना रह सकता है और आलोचना के साथ-साथ सराहना भी की जा सकती है। यह संदेश केवल मध्यप्रदेश की राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी प्रासंगिक है। यदि सभी दल और नेता इस प्रकार की संसदीय परंपराओं को अपनाएं तो लोकतंत्र और अधिक सशक्त, विश्वसनीय और जनोन्मुखी बन सकता है।

● लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षक

कैलाश विजयवर्गीय का यह भाषण इसलिए भी स्मरणीय रहेगा क्योंकि उसमें विकास की निरंतरता पर जोर दिया गया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सरकारें बदल सकती हैं, लेकिन विकास की धारा को अविरल रहना चाहिए। इस सोच के साथ वे राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर प्रदेश के हित की बात करते नजर आए। यही कारण है कि उनके संबोधन को सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के कई सदस्यों ने भी गंभीरता से सुना और सराहा। यह कह सकते हैं कि विजयवर्गीय का विधानसभा में दिया गया संबोधन भारतीय संसदीय लोकतंत्र की उस परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है, जहां विचारों की भिन्नता के बावजूद संवाद की शालीनता बनी रहती है। अटल बिहारी वाजपेयी की संसदीय संस्कृति की झलक, इतिहास के प्रति सम्मान, वर्तमान के प्रति जिम्मेदारी और भविष्य के प्रति आशावाद-इन सभी तत्वों का सुंदर समन्वय उनके भाषण में दिखाई दिया। आज के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसे नेताओं की आवश्यकता है जो न केवल अपने दल का प्रतिनिधित्व करें, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षक भी बनें। कैलाश विजयवर्गीय ने अपने इस संबोधन से यह सिद्ध कर दिया है कि वे इस भूमिका को भली-भांति निभाने की क्षमता और इच्छाशक्ति रखते हैं। उनका यह प्रयास निश्चय ही मध्यप्रदेश की राजनीति को एक सकारात्मक दिशा देने वाला सिद्ध होगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए संसदीय आचरण का एक प्रेरक उदाहरण बनेगा।

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