नेहरू और सावरकर



--के• विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

कांग्रेसजन ने नैतिक औचित्य की सभी मान्य वर्जनाओं को तोड़ डाला। विनायक सावरकर पर गन्दी पुस्तिका (सोनिया-नीत कांग्रेस सेवादल प्रमुख लालजी भाई देसाई द्वारा प्रकाशित और वितरित) में इस स्वातंत्र्य वीर को समलैंगिक बताकर इस पुरानी पार्टी ने सियासी मर्यादा पूर्णतया भंग कर डाली। शालीनता को विकृत कर दिया। मर्यादा की गरिमा को गिरा दिया। अतः अब हरेक को खुली छूट मिल गई कि वह जवाहरलाल नेहरू, उनकी बहन और बेटी, नवासे की भार्या आदि के निजी जीवन, खासकर रत्यात्मक केलि, पर सारगर्भित भाष्य लिख सकेंगे। बिस्मिल्लाह तो कांग्रेस ने कर ही दी है।

कुरुक्षेत्र में भीष्म-निर्दिष्ट नियम अभिमन्यु को मारकर बेमायने कर दिये गये थे। नतीजन द्रोण, कर्ण, दुर्योधन का भी, वर्जनाओं को तोड़कर, वध किया गया था।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के राजकाज पर एडविना माउन्टबेटन का प्रभाव तो कई लेखकों ने सप्रमाण, सचित्र छापा है। पंद्रह वर्षों तक प्रधानमंत्री के निजी सचिव रहे एमओ मथाई ने अपने संस्मरण ‘रेमिनिसेंस ऑफ़ नेहरू एज’ में लिखा था कि काशी की तांत्रिक माता श्रद्धा देवी की कोख से नेहरू का पुत्र हुआ था। लोकलाज के कारण शिशु का बंगलुरु के चर्च में पोषण हुआ। वह अनजाना ही रहा। मशहूर ब्रिटिश लेखक एंड्रयू लोअनी ने अपनी पुस्तक ‘देयर लाइव्स एण्ड लव्ज: माउंट बैटन्स’ में लिखा था कि पामेला माउन्टबैटन ने उन्हें दिये इंटरव्यू में बताया कि उनकी माँ एडविना माउन्टबैटन का नेहरू से घना याराना था, पर जिस्मानी रिश्ता शायद न हो पाया क्योंकि दोनों नई दिल्ली में राजकाज में व्यस्त रहे। हालाँकि उनकी बीबी के इस जारकर्म की जानकारी वायसराय माउन्टबैटन को पूरी थी। अर्थात् कश्मीर नीति (धारा 370 की रूपरेखा, जनमत संग्रह का नेहरूवाला वायदा, पाक-अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना के प्रवेश के पूर्व ही रोक आदि) अब भलीभांति समझ में आती है।

बिहार की सांसद (प्रथम लोकसभा : 1952) 25-वर्षीया लावण्यवती तरुणी तारकेश्वरी सिन्हा ने लिखा था कि सचिव मथाई उन्हें प्रधान मंत्री से भेंट नहीं करने देता था। पहले अपने कमरे में भेंट का जिद करता रहा। पश्चिम बंगाल की राज्यपाल कुमारी पद्मजा नायडू (प्रथम यूपी राज्यपाल सरोजिनी नायडू की पुत्री) का कोलकाता राजभवन में नेहरू की मेजबानी बहुत चर्चित रहती थी। पुपुल जयकर ने “इंदिरा गाँधी की बायोग्राफी” में लिखा था कि नेहरू ने पद्मजा से विवाह नहीं किया क्योंकि इकलौती पुत्री इंदिरा गाँधी यूं ही खिन्न रहती थी। इंदिरा गाँधी ने मौलाना आजाद से कई बार आग्रह किया था कि “उस औरत (एडविना) से पापू (नेहरू) को बचायें।” अपने संस्मरण ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ में मौलाना आजाद ने लिखा कि नेहरू-एडविना के ताल्लुकात काफी गहरे थे। नेहरू के घोरतम शत्रु राममनोहर लोहिया ने इस प्रधानमंत्री का बचाव किया था, कि “यदि वर्षों से विधुर रहा कोई पुरुष एक नारी मित्र के आगोश में सुकून पाता है, तो नाजायज कैसे है?”

इसी सिलसिले में इंदिरा गाँधी का जिक्र हो। दिल्ली में पिता के आवास पर राजीव और संजय के साथ वे रहीं, जबकि फिरोज गाँधी (प्रेम-विवाह हुआ था) मगर अलग मकानों में रहते थे। मोहम्मद यूनुस, राजा दिनेश सिंह, घीरेंद्र ब्रम्हचारी आदि से उनकी अंतरंगता उनदिनों राजधानी के गलियारों में चर्चित रही थी। तारकेश्वरी को लेकर फिरोज गाँधी दिल्ली प्रेस क्लब जाते थे। एक शाम अचानक इंदिरा गाँधी प्रेस क्लब में धमक पड़ीं। शक था कि फिरोज का तारकेश्वरी से रिश्ता है। हालाँकि यह बिहारी सांसद ससुर और दामाद दोनों की दोस्त रही।

मगर नेहरू से जुडी एक घटना का उल्लेख दूसरे पहलू को उजागर करने के लिए यहाँ जरूरी है। तब (27 मई 1964 को) नेहरू के निधन पर आये शोक संदेशों में एक यूरोपियन राष्ट्र के राजनयिक की युवा पत्नी ने लिखा था, ‘मेरे सतीत्व की रक्षा नेहरू ने की थी। तब मेरे पति जकार्ता में राजदूतावास में कार्यरत थे। हिंदेशिया के राष्ट्रपति अहमद सुकर्णों की नजर मुझपर पड़ी। उन्होंने जकार्ता से बाहर मेरे जाने पर अवैध रोक लगा दी थी। तब मेरी याचना पर भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने जहाज में बैठाकर मुझे आजाद कराया था।” (25 अप्रैल 1955 : बांडुंग आफ्रो-एशिया सम्मेलन)। तो नेहरू के व्यक्तित्व का यह भी एक पक्ष था।

मगर अब वीर सावरकर से बात निकली है तो अब अवश्य दूर तलक जाएगी।

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