बात बालों वाली



--के• विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

दिल्ली शासन का एक जनोपयोगी निर्णय था कि केश कला बोर्ड गठित किया जायेगा। सोमवार 6 जनवरी 2020 को प्रसारित हुए विधान सभा चुनाव-कार्यक्रम की घोषणा के काफी पहले का यह निश्चय हो चुका था। सरकार की मूलभूत मंशा रही होगी कि क्षौर-कर्मियों के कौशल का सम्यक विकास हो। व्यवसाय की क्षमता बढ़ेगी तो समृद्धि भी होगी। यूं भी यह केश विन्यास उद्योग सालाना करीब साढ़े बाईस हजार करोड़ का है। अभी तक उपेक्षित ही रहा। हालाँकि पूँजी अल्प परिमाण में न्यस्त होती है मगर लाभांश कई गुना मिलता है।

हम अखबारकर्मियों तथा केशकर्तन कर्मियों में चोली दामन का नाता रहता है। अर्थात् रिश्ते में हम नाई के बिरादर हैं, सहोदर ना सही। हम अहलकार (शिक्षित कर्मी) हैं, जबकि वे (नाई) कुशल कर्मकार हैं। मसिजीवी और श्रमजीवी। एक रिपोर्टर के नाते मैंने पाया कि हज्जाम का कार्यस्थल (सैलून) समाचारों की खान होती है। बस खनन की दक्षता की दरकार है। बानगी के तौर पर देखें। वाकया लन्दन के एक मशहूर सैलून का है। पिछली सदी का। एक बार लार्ड चार्ल्स हार्डिंग हजामत हेतु वहाँ गए। अमूमन हज्जाम मुतबातिर बात करता रहता है, बिना विराम के, बिना विश्राम के। सूचनाओं की खदान उसके पास रहती है। अतः लार्ड हार्डिंग ने बातचीत के दरम्यान कुछ पूछा होगा। कुछ देर बाद उसी कुर्सी पर लन्दन टाइम्स का रिपोर्टर पहुंचा और उसी नाई से केशकर्तन कराया। फितरतन उस हज्जाम ने पत्रकार को बताया कि लार्ड हार्डिंग आये थे। बातचीत का ब्यौरा माँगने पर नाई ने बताया कि वे नई दिल्ली के मौसम के बारे में पूछ रहे थे। वह नाई कुछ समय भारत में कार्यरत था। रिपोर्टर की खोपड़ी का एंटिना टनटनाया। दफ्तर आकर उसने खबर लगाई कि भारत के अगले वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग नियुक्त हुए हैं। दो और दो उस रिपोर्टर ने जोड़ा, क्योंकि पैंसठ वर्षीय लार्ड गिल्बर्ट मिन्टों दिल्ली से लन्दन वापस (1910) वतन लौट रहे थे। उधर प्रथम विश्वयुद्ध की भनक सुनाई दे रही थी। भारत की राष्ट्रीय राजधानी भी कोलकाता से नई दिल्ली (1911) बनने वाली थी। अतः वायसराय के पद को इन परिस्थितियों में रिक्त नहीं रखा जा सकता था। इतनी सूचना पर्याप्त थी खबर बनाने के लिये। लेकिन गमनीय पहलू है कि नाई ही स्रोत था। संयोग से रिपोर्टर उसी कुर्सी पर विराजा और उसी नाई ने उसकी हजामत बनाई, खबर भी दी।

हम श्रमिकों की दृष्टि में हज्जाम का मानवीय उपयोग भारत के मजदूर आन्दोलन के प्रणेता नारायण मेघनाथ लोखंडे (1848-1897) ने किया था। महाराष्ट्रवासी इस कर्मयोगी ने भारत में जन आन्दोलन का सूत्रपात किया था। और विधवाओं पर हो रहे जुल्म को ख़त्म किया था। उस दौर में पति के मरते ही विधवा के बाल काट दिए जाते थे। नारायण लोखंडे ने नाईयों की यूनियन बनाई और प्रण कराया कि अब विधवा की खल्वाट (गंजा) वाली प्रथा ख़त्म होगी। तब नाईयों ने आय में हानि झेलकर भी ऐसा मानवीय कर्तव्य निभाया।

यह घटना स्वतंत्रता के तुरंत बाद की है। शिमला में नए वायसराय लुई माउन्टबैटन तथा अंतरिम सरकार के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू वहीँ विश्राम गृह में वार्ता में मशगूल थे। उन्हीं दिनों विद्युत्-चालित शेविंग उपकरण नया-नया ब्रिटेन से आयात हुआ था। कक्ष में वायसराय ने प्रधानमन्त्री को उसका प्रयोग करना सिखाया। नेहरू की ठुड्डी पकड़कर गालों पर चला रहे थे। तभी खिड़की से हिंदुस्तान टाइम्स के फोटोग्राफर ने कैमरे का बटन दबा दिया। खिड़की से फांदकर नेहरू ने उसे दौड़ाया। पर वह हाथ नहीं लगा। मगर वह ऐतिहासिक और बेशकीमती फोटो छापने की हिम्मत किसी की भी नहीं हुई। “भारत का ब्रिटिश राज्याध्यक्ष गुलाम देश के प्रधानमंत्री को मूढ़ रहा है।” यहीं फोटो का शीर्षक होता। नाईगिरी का नायाब नमूना पेश आता। खबर तो जबरदस्त बनती ही।

पड़ोसी राष्ट्र से एक जोरदार खबर आई थी कुछ वर्ष पूर्व। व्यंग्य पत्रिका में यह प्रकाशित हुई थी। तब मार्शल मोहम्मद जियाउल हक पाकिस्तान के तानाशाह थे। फौजी राज था। कई बार चुनाव की घोषणा के बावजूद भी मतदान नहीं हो रहा था। मार्शल के फौजी नाई ने एक दिन उनकी दाढ़ी बनाते वक्त पूछा था कि “इन्तखाब कब होगा?” जवाब जिया हर बार टाल जाते। कुछ दिनों के बाद पुनः प्रश्न दुहराने पर जिया के तेवर गर्म हुए और नाई को डांटा कि, “न चुनाव कराएँ तो तेरे बाप का क्या? क्यों तंग करता है?” सहमते हुए नाई ने कहा: “सदर साहब ! मुझे उस्तरा फेरने में सहूलियत होती है। आपके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।” अर्थात् चुनाव शब्द सुनते ही जिया के सिर के बाल उड़ जाते थे। उन्हें नोचने के अलावा चारा क्या रहता?

फ़िलहाल किस्से सुने नाई से, खबर बनाये रिपोर्टर, यही सिलसिला अनवरत रहता है। बस प्रकाशन के लिए पत्रिका में स्थान पाने का सवाल है।

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